Wednesday, January 25, 2023

तंत्र गण का या जन का

            "तंत्र गण का या जन का"

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भारत देश को संविधान में गणराज्य का दर्जा प्राप्त है जिसका तात्पर्य है कि राष्ट्र का प्रमुख निर्वाचित होगा । इस गणराज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक 'तंत्र'  अर्थात मशीनरी होगी जिसके तहत संपूर्ण प्रशासकीय अमला आता है जो भारत में निवासरत  'जन'  अर्थात नागरिकों के हित में कार्य संपादन करेगा ।

        भारत को गणतंत्र बने 73 वर्ष बीत चुके हैं । आज हम सभी 74 वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं ।  इसके बावजूद यह प्रश्न हम सभी के समक्ष मुंह बाएं खड़ा है कि तंत्र किस के लिए कार्य करता है जन के लिए या गण के लिए ? इसे आसान शब्दों में इस प्रकार समझा जा सकता है कि प्रशासनिक मशीनरी को लोकसेवक माना जाता है क्योंकि इस ढांचे का निर्माण ही आम जनता को सेवा सुरक्षा एवं सुविधा प्रदान करने के लिए किया गया है ।

            प्रायः देखने में आता है कि तंत्र  'गण' अर्थात विशिष्ट श्रेणी के लिए कार्य संपादन में संलग्न रहता है अर्थात आजादी के इतने समय बाद भी हम गुलामी वाली मानसिकता से उभर नहीं पाए हैं । देश में अंग्रेजों का स्थान 'वीआईपी संस्कृति'  ने ले लिया है । यह संस्कृति प्रत्येक क्षेत्र में अपना रुतबा दिखाने को बेताब रहती है फिर वह चाहे कोई सरकारी कार्य हो कोई आयोजन हो या फिर मंदिर दर्शन की व्यवस्था ही क्यों न हो सब जगह इन विशिष्ट श्रेणी के लोगों को प्राथमिकता प्रदान की जाती है । आमजन की आज भी यह विचारधारा है कि कोई पहुंच होने पर कार्य आसानी से हो जाएगा अन्यथा नहीं होगा जन के मन में तंत्र के प्रति भय का माहौल पनपता है हालांकि अब इस परिदृश्य में अनेक सकारात्मक परिवर्तन होते नजर आ रहे हैं, लेकिन ऐसे उदाहरण यत्र- तत्र और यदा-कदा ही दृष्टिगोचर होते हैं । विदेशों में स्थितियां और परिवेश हमारे देश से पृथक है, लेकिन सुखद स्थिति यह है कि समाचार पत्रों में ऐसी खबरें प्रकाशित होती रहती हैं कि फलादेश का राष्ट्र प्रमुख साइकिल पर चलता है या फलादेश के राष्ट्र प्रमुख के बच्चे आमजन की तरह रोजगार में संलग्न रहते हैं या फलादेश का राष्ट्र प्रमुख साधारण जीवन व्यतीत करता है ऐसी स्थिति भारत देश में अभी भी दुर्लभ है । यहां हर बात स्टेटस सिंबल की तरह ली जाती है अर्थात ऐसा करने से प्रतिष्ठा धूमिल हो जाएगी । हमारे देश में अनेक कार्य आज भी समाज और प्रतिष्ठा के डर से अंजाम दिए जाते हैं ।

           अंत में पुनः इस उम्मीद के साथ की इस संवैधानिक गणतंत्र में तंत्र जन की सेवा सुरक्षा एवं सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में सदैव अग्रसर रहेगा और गण भी तंत्र को आवश्यक संसाधन समय-समय पर उपलब्ध कराता रहेगा ताकि वह अपने दायित्वों का निर्वहन भली-भांति कर सके और जन का जीवन समृद्धि में हो सके । साथ ही जन को भी अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना होगा तभी जन गण मन का सपना सकार हो सकेगा । अभी तक भारतवर्ष का गणतंत्र पूरी दुनिया के समक्ष कौतूहल और गौरव का विषय रहा है और हमारे समक्ष यह चुनौती है कि यह परंपरा इसी प्रकार भविष्य में भी अनवरत कायम रहे, इसकी महती जिम्मेदारी जन, गण और तंत्र के कंधों पर ही है और हमें आशा ही नहीं वरन विश्वास है कि वह इस जिम्मेदारी को भलीभांति निभाने में सफल होंगे।   


       सहृदय आभार हरियाणा प्रदीप 

   


                   स्वलिखित 

         सुश्री हेमलता शर्मा भोली बेन,

                  इंदौर मध्य प्रदेश

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