Friday, August 30, 2024

बछ बारस मालवा-निमाड़ को मोटो परब

   

 

            आज हे बछ बारस। मालवा-निमाड़ को मोटो परब । नरा लोगोण ने तो सुण्यो भी नी होयगो। पण नवी पीढ़ी के अपणा परब, संस्कृति, तीज तेवार ने परम्परा होण का बारा में मालम होणो चइए। तो आव जाणा कई होय बछ बारस। 

               बछ बारस को परब भादो मास का कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि के मनायो जाय हे। इके गोवत्स द्वादशी का नाम से भी जाण्यो जाय हे । आज को बरत मां होण अपना बेटा की लंबी आयु वास्ते करे हे। इका पीछे भी पौराणिक कथा प्रचलित हे। पेला पूजा विधि समझी लो फेर केणी भी सुणय दुवा।     


बछ बारस की पूजा विधि-

          इना दन बयरा होण परोड़े स्नान करी ने लाल-पीली चुनरी पेरी ओढ़ी ने पूजा वास्ते थाली तेयार करे जिमे कंकु,अबीर, हल्दी , वस्त्र ,जल को लोटो रखी ने गो माता की बछड़ा का साते पूजा करे।  गो माता अने बछड़ा के नवा वस्त्र धारण करावे। उनको सिंगार करे। उनका उपर हल्दी, कंकू का हाथ से छापा लगय ने उनके पूजा वास्ते तेयार करे। एक दन पेला ज ग्वाला के न्योतो दय दे के गो माता को सिंगार करी ने बछड़ा साते लय आजो। फेर मोहल्ला की सगली बयरा होण भेली हुई ने गो माता ने बछड़ा की पूजा करे। 

नियम-

          आज का दन बयरा होण निराहार बरत करे। गो माता की पूजा करी ने मोटो अनाज जुवार बाजरा की रोटी बणय ने खाय। आज का दन चक्कू, केंची, सुई को प्रयोग नी‌ करे अने चक्कू से कटी साग भाजी भी नी खाय।  असो नेम राखे हे। 

          

बछ बारस की कहानी(केणी)- केणी हिन्दी में कय री हू ताकि सब सीखी जाय। मालवी में सुनने वास्ते म्हारा यूट्यूब चेनल पे चली जाजो । गूगल पे भोली बेन लिखी ने सर्च करी लीजो हो।

एक समय की बात है किसी गांव में एक साहूकार रहता था। जिसके सात बेटे और ढेर सारे पोते थे। एक दिन गांव में भीषण अकाल पड़ गया। तब साहूकार ने गांव में एक तालाब बनवाया। लेकिन उस तालाब में कई साल तक पानी नहीं आया। तब साहूकार ने पंडितों से इसका उपाय पूछा। पंडितो ने कहा कि तुम्हें अपने बड़े बेटे या बड़े पोते की बलि देनी होगी तब यहां पानी आ सकता है। साहूकार ने गांव की भलाई का सोचते हुए बलि देने का निर्णय किया।

साहूकार ने अपनी बहु को एक पोते हंसराज के साथ उसके पीहर भेज दिया और बड़े पोते को अपने पास रख लिया कहते हैं उसका नाम बच्छराज था। उस तरह से बच्छराज की बलि दे दी गई। जिसके बाद तालाब में पानी भी आ गया। इसके बाद साहूकार ने तालाब पर ही एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया। लेकिन अपने पोते की बलि के झिझक में वह अपनी बहू को बुलावा नहीं भेज पाया। बहु के भाई ने कहा तेरे यहां पर इतना बड़ा उत्सव है पर तेरे ससुर ने तुझे क्यों नहीं बुलाया ? मुझे बुलाया है, मैं जा रहा हूं।

बहू बोली शायद काम में वे भूल गए होंगे और अपने घर जाने में कैसी शर्म? मैं भी चलती हूं। जब बहू घर पहुंची तो सास ससुर डरने लगे कि बहु को पता लग गया तो क्या जवाब देंगे। फिर भी सास हिम्मत करके बोली बहू चलो बछ बारस की पूजा करने तालाब पर चलते हैं। दोनों जाकर पूजा करने लगीं। सास बोली, बहु तालाब की किनार खंडित करो।

            बहु बोली मेरे तो दो पुत्र हैं हंसराज और बच्छराज फिर मैं खंडित क्यों करूं। सास बोली जैसा मैं कहू वैसे करो। बहू ने अपनी सास की बात मानते हुए किनार खंडित की और कहा “आओ मेरे हंसराज , बच्छराज लडडू उठाओ। ” उसकी सास मन में भगवान से प्रार्थना करने लगी कि हे बछ बारस माता मेरी लाज रखना। कुछ देर बाद तालाब की मिट्टी में लिपटा बच्छराज व हंसराज दोनों दौड़े चले आये। बहू पूछने लगी “सासू मां ये सब क्या है ?” तब सास ने बहू को सारी बात बता दी और कहा भगवान ने मेरा सत रखा है। आज भगवान की कृपा से सबकुछ सही हो गया। हे बछ बारस माता ! जैसे सास का सत रखा वैसे ही सभी का रखना। जैसे बहू की बेटे को अमर किया वैसे सबके बेटों को करना। 

   


                     मिलता-जुलता रीजो।  जे राम जी की 😀🙏

                              तमारी अपणी               भोली बेन 

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