Tuesday, September 17, 2024

गाजबीज माता को बरत -मालवी लोक परम्परा

 गाजबीज माता को बरत -मालवी लोक परम्परा

अपणो मालवो निमाड़ तीज तेवार की खान हे। यां की जगे केवात हे - बारा दन का बीस तेवार। केणे को मतलब हे कि रोन नित नवा तीज तेवार मनाया जाय । कोई दन असो नी हिटे के आज कोई देवी देवता के पूज्यो नी जाय या आज कय नी हे। यां का लोगोण अपणी लोक परम्परा को पालन करे , या अच्छी बात हे। सनातन धर्म का पौराणिक कैलेंडर का अनुसार  गाज बीज माता को बरत भादो मास की द्वितीया तिथि के रख्यो जाय हे । नरा लोगोण अपनी सुविधा से भादो मास में कोई सा भी दन गाज माता को बरत रखी सके। 


क्यों किया जाता है - यो बरत घर की सुख-समृद्धि अने शांति वास्ते रख्यो जाय हे। अने निपूती संतान वास्ते भी यो बरत करे। आज का दन बयरा होण एकासनो करे मतलब कि एक ज टेम भोजन करें साते ज गाज बीज माता की पूजा करे। 

पूजा विधि - गाज बीज माता की पूजा विधि इनी तरे हे- एक लकड़ी का पाट्या का उपर काली मट्टी से गाज बीज माता का पुतला बनाया जाय । घोड़ा का उपर बेठ्या हुवा आदमी ओरत अने बच्चा को अने शिवलिंग अने पारवती जी को पुतलो बनायो जाय। मछ-कछ की तलई बनई जाय । गाज बीज माता की पूजा शुरू करने से पेला बयरा होण एक-दूसरा के कलावो (दोरो) बांध हे. इका बाद बयरा होन माता को भोग / प्रसाद(रोट अने चावल की खीर) बनाय  हे । घर में जित्ता आदमी होन रे उका दुगना रोट बणय ने पाट्या का उपर रख्या जाय । अने खीर को भोग लगय ने सोलह श्रृंगार करी ने बयरा होन पूजा करे। फेर कथा सुने। गाज बीज माता की कथा पढ़ने/सुनने का पेला जिन बयरा होन ने बरत रख्यो हे, उनके हाथ में बंध्या कलावा के खोलनो होय । इके मुट्ठी में रखी ने रोट को परसाद सात बार तोड़ी ने हाथ में रखी ने धूप दीप करें । अब इकी कथा  शुरू होय । 

गाज बीज माता के व्रत की कथा-

10 तरे की कथा केणी प्रचलित हे। कोई सी भी एक सुनी लो। कथा का बाद रोट आदमी होन के खाने वास्ते दिया जाय अने बयरा होन संजा का टेम जीमी ले। केणी हिन्दी में ज सुनऊंगा ताकि सब सीखी जाय। 

एक गांव में जमींदार रहता था। जब भादो का महीना आया तो जमींदार की पत्नी ने अपनी दासी से कहा कि हम गरज खोलेंगे जाओ तुम ब्राह्मण के यहां से जाकर गरज ले आओ। पहले समय में ब्राह्मण के यहां से ही गरज आया करते थे। रानी की बात मानकर दासी ब्राह्मण के घर जाकर गरज ले आई। फिर दासी और रानी ने गरज को बांधे। इसके बाद कथा कही। फिर पूजन करने के बाद गरज को खोले। इतने में रानी ने देखा की जमींदार साहब घर वापस आ रहे हैं। इसके कारण वो सभी गरज रानी ने नाथ के नीचे छिपा दिए। लेकिन उनकी खूशबू उनके पति को आ रही थी।

उन्होंने हर जगह देखा की यह खुशबू कहां से आ रही है। लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला। इसके बाद वो नाद के पास पहुंचे तो गरज की खूशबू तेज होने लगी। उन्होंने जैसे ही नाद हटाया तो उसके नीचे से गरज मिले। उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा की यह क्या है और इसे कौन खाएगा, तो उन्होंने बताया कि यह गरज हैं, जो गाज माता के व्रत में बनाएं जाते हैं। इसे घर की महिलाएं खाती हैं। फिर इसपर जमींदार ने कहा की यह तो बहुत मोटी रोटियां हैं इसे कैसे कोई खास सकता है। ऐसा कहकर उन्होंने वो सारे गरज गाय और कुत्ते को खिला दिए। इसके बाद उनके घर में निर्धनता का वास हो गया। एक दिन जमींदार ने कहा तुम यहां रहो। हमें सभी जानते हैं तो कोई कार्य नहीं देगा। हम परदेस जाएंगे। इसपर रानी और दासी ने भी कहां हम भी जाएंगे। वह तीनों लोग अपना राज्य छोड़कर निकल गए।

रास्ते में जमींदार को एक मछलियों से भरा तालाब मिला। उन्होंने पत्नी से कहा की आप मछलियों को भूनकर रखना मैं नहाकर आता हूं। पत्नी ने हां कर दी। जैसे ही उनकी पत्नी ने कढ़ाई में मछली डाली वो कूदकर पानी में चली गईं। जब जमींदार नहाकर आए उन्होंने पत्नी से खाना मांगा। पत्नी ने कहा सारी मछलियां मैंने खा ली है। आपके लिए कुछ नहीं बचा। फिर वो आगे चलने लगे। उन्हें तीतर मिले। जमींदार ने तीतर पकड़ने और उन्हें अपनी पत्नी को पकाने के लिए कहा। तीतर पकने से पहले उड़ गए। फिर वो सभी लोग भूखे रहे। आगे उन्हें अपना दोस्त मिला, वो उन्हें घर ले आए।

दोस्त के घर जाकर देखा तो खूंटी हार निगल रही थी। इसपर जमींदार ने अपनी पत्नी से कहा की यहां से चलते हैं, वरना हमारे ऊपर चोरी का इल्जाम लग जाएगा, वो खाना खाकर वहां से रात के समय निकल गए। इसके बाद वो अपनी बहन के राज्य में पहुंचे। बहन ने मंत्रियों से पूछा भाई किस अवस्था में आ रहे हैं। उन्होंने कहा वो पैदल और बेहद बुरी अवस्था में आ रहे हैं। बहन ने कहा कि भाई को कुम्हार के कमरे में रुकने को बोला और घर से खाने के साथ छिपाकर हीरे जवाहरात भेजे जो कोयला हो गए। जमींदार उन्हें वहीं गाड़ कर आगे चल दिया।वह एक राज्य में पहुंचकर घर-घर जाकर काम करने लगते हैं। फिर एक साल बाद भादो का महीना आता है। जमींदार की पत्नी गाजबीज माता का व्रत रख गरज खोलती है। उनके दिन बदल जाते हैं। तब जमींदार अपनी पत्नी से कहता है कि देखो जब दिन बुरे थे, तो सारे संकट हमारे साथ चले आ रहे थे। अब दिन अच्छे हुए हैं, तो हमारे सारे संकट कट गए हैं।

इसलिए हर साल भादो के महीने में गाजबीज माता का व्रत किया जाता है, ताकि घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहे।

तो अपणी लोक परम्परा होन को पालन करता रीजो अने भोली बेन से राम राम करता रीजो। जे राम जी की। 

 

                             तमारी अपणी 

                                भोली बेन 





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गाजबीज माता को बरत -मालवी लोक परम्परा

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