शीर्षक-- घबरायो मन
अईं कोरोना को केहर,
वई़ बरसात से बेहाल सेहर,
सुनसान सड़कां ने यो मंज़र ,
मन के घबरय ग्या ।
घरहोण में केद मनख शरीर,
पांवहोण में कर्फ्यू की जंजीर,
कोरोना का ई बदल्या तेवर,
मन के घबरय ग्या ।
रूक्या-सा 'विकास' का चक्का,
मन में जीत का भाव पक्का,
विरोध का वी तीखा स्वर ,
मन के घबरय ग्या ।
ग़रीबहोण पे दुख को सायो,
कोरोना को मातम छायो,
कफ़न वास्ते तरसता शव,
मन के घबरय ग्या ।
थम्यो-थम्यो-सो यो संसार,
लाशहोण को बढ़तो अंबार,
पेचाण खोता हुआ रिश्ता,
मन के घबरय ग्या ।
स्वरचित
हेमलता शर्मा
'भोली बेन'
राजेन्द्र नगर, इंदौर
मध्यप्रदेश
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