Wednesday, July 21, 2021

शीर्षक-- घबरायो मन                                                                    



अईं कोरोना को केहर,

वई़ बरसात से बेहाल सेहर,

सुनसान सड़कां ने यो मंज़र ,

मन के घबरय ग्या ।


घरहोण में केद मनख शरीर, 

पांवहोण में कर्फ्यू की जंजीर,

कोरोना का ई बदल्या तेवर, 

मन के घबरय ग्या ।


रूक्या-सा 'विकास' का चक्का,

मन में जीत का भाव पक्का, 

विरोध का वी तीखा स्वर ,

मन के घबरय ग्या  ।


ग़रीबहोण पे दुख को सायो,

कोरोना को मातम छायो,

कफ़न वास्ते तरसता शव,

मन के घबरय ग्या ।


थम्यो-थम्यो-सो यो संसार,

लाशहोण को बढ़तो अंबार,

पेचाण खोता हुआ रिश्ता,

मन के घबरय ग्या  ।


         स्वरचित

      हेमलता शर्मा

      'भोली बेन'

राजेन्द्र नगर, इंदौर

          मध्यप्रदेश

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