सीता जी एक सनातन भारतीय नारी का प्रतिनिधित्व करती हैं । सीताजी का चरित्र एक ऐसी स्त्री का परिचायक है जो एक आदर्श पुत्री, आदर्श पत्नी,आदर्श बहू एवं आदर्श माता की भूमिका का निर्वहन करती हैं ।
वर्तमान परिस्थितियां चाहे पुरातन स्थितियों से भिन्न हो लेकिन आज भी नारी को इन विभिन्न भूमिकाओं का निर्वाहन करना होता है । प्राचीन समय में नारी आत्मनिर्भर नहीं होती थी और अपनी आवश्यकताओं के लिए परिवार पर निर्भर होती थी जबकि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आज की नारी आत्मनिर्भर होने के साथ साथ घर परिवार एवं विभिन्न आर्थिक सामाजिक राजनीतिक पदों पर विराजित होकर बहुआयामी भूमिका का निर्वहन कर रही है।
वर्तमान परिस्थितियों में नारी भी यदि सीता जैसे आदर्श उपस्थित करती है तो निश्चय ही वह पिता, पति और बच्चों के साथ ही परिवार और समाज की भी चहेती होती है किंतु इस प्रकार का उत्तरदायित्व एवं भूमिका का निर्वहन वह तभी कर सकती है जब उसे सीता माता की तरह बचपन से वैसे ही परवरिश वैसा ही आदर सम्मान प्राप्त हो।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हम नारी को विभिन्न कठिनाइयों से जूझते हुए देखते हैं । वर्तमान समानता के युग में भी नारी को पुरुष प्रधान सामाजिक मानसिकता का शिकार होना पड़ता है और कई अवसरों पर उसे खामियाजा भी भुगतना पड़ता है, लेकिन इसका प्रतिशत भी बहुत अधिक नहीं है।
वर्तमान परिदृश्य में यदि हम नारी से सीता बनने की उम्मीद रखते हैं तो निश्चय ही उसे उतना ही आदर सम्मान और पहचान दिए जाने की आवश्यकता है और इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सीता माता जैसा आदर्श चरित्र और व्यक्तित्व की स्वामिनी प्रत्येक नारी बन्ना चाहती है लेकिन उनको मिले कष्टों के कारण कहीं ना कहीं नारी के मन में रोष भी उत्पन्न होता है और वह बागी हो जाती है जिसका सामना एस पुरुष प्रधान समाज को करना पड़ता है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारी आज पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर हर मोर्चे पर डटी हुई है और वहां आत्मनिर्भर है । आज स्त्री उनका काश में एक स्वच्छंद पंछी की भांति विचारणा चाहती हैं लेकिन उड़ती हुई पतंग तब तक ही आकाश में सफलता पूर्वक उड़ान भर्ती है जब तक की वह मांजे की डोर से बंधी हुई है अर्थात स्त्री त्याग,स्नेह, ममता, आत्मीयता और ऐसे ही अनेक गुणों का सम्मिश्रण है उसे उतने ही आदर से देखा जाना चाहिए जो सीता माता को प्राप्त था। ऐसा करके हम विभिन्न सामाजिक पारिवारिक विवादों और समस्याओं का स्थाई समाधान कर सकते हैं।
हेमलता शर्मा "भोली बेन"
राजेंद्र नगर इंदौर
वर्तमान परिस्थितियां चाहे पुरातन स्थितियों से भिन्न हो लेकिन आज भी नारी को इन विभिन्न भूमिकाओं का निर्वाहन करना होता है । प्राचीन समय में नारी आत्मनिर्भर नहीं होती थी और अपनी आवश्यकताओं के लिए परिवार पर निर्भर होती थी जबकि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आज की नारी आत्मनिर्भर होने के साथ साथ घर परिवार एवं विभिन्न आर्थिक सामाजिक राजनीतिक पदों पर विराजित होकर बहुआयामी भूमिका का निर्वहन कर रही है।
वर्तमान परिस्थितियों में नारी भी यदि सीता जैसे आदर्श उपस्थित करती है तो निश्चय ही वह पिता, पति और बच्चों के साथ ही परिवार और समाज की भी चहेती होती है किंतु इस प्रकार का उत्तरदायित्व एवं भूमिका का निर्वहन वह तभी कर सकती है जब उसे सीता माता की तरह बचपन से वैसे ही परवरिश वैसा ही आदर सम्मान प्राप्त हो।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हम नारी को विभिन्न कठिनाइयों से जूझते हुए देखते हैं । वर्तमान समानता के युग में भी नारी को पुरुष प्रधान सामाजिक मानसिकता का शिकार होना पड़ता है और कई अवसरों पर उसे खामियाजा भी भुगतना पड़ता है, लेकिन इसका प्रतिशत भी बहुत अधिक नहीं है।
वर्तमान परिदृश्य में यदि हम नारी से सीता बनने की उम्मीद रखते हैं तो निश्चय ही उसे उतना ही आदर सम्मान और पहचान दिए जाने की आवश्यकता है और इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सीता माता जैसा आदर्श चरित्र और व्यक्तित्व की स्वामिनी प्रत्येक नारी बन्ना चाहती है लेकिन उनको मिले कष्टों के कारण कहीं ना कहीं नारी के मन में रोष भी उत्पन्न होता है और वह बागी हो जाती है जिसका सामना एस पुरुष प्रधान समाज को करना पड़ता है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारी आज पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर हर मोर्चे पर डटी हुई है और वहां आत्मनिर्भर है । आज स्त्री उनका काश में एक स्वच्छंद पंछी की भांति विचारणा चाहती हैं लेकिन उड़ती हुई पतंग तब तक ही आकाश में सफलता पूर्वक उड़ान भर्ती है जब तक की वह मांजे की डोर से बंधी हुई है अर्थात स्त्री त्याग,स्नेह, ममता, आत्मीयता और ऐसे ही अनेक गुणों का सम्मिश्रण है उसे उतने ही आदर से देखा जाना चाहिए जो सीता माता को प्राप्त था। ऐसा करके हम विभिन्न सामाजिक पारिवारिक विवादों और समस्याओं का स्थाई समाधान कर सकते हैं।
हेमलता शर्मा "भोली बेन"
राजेंद्र नगर इंदौर
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