हरतालिका तीज-मालवा-निमाड़ की बयरा होण को सुहाग बरत
असो बोल्यो जाय हे कि अपणो भारत तीज तेवार को देस हे तो अपणो मालवो-निमाड़ भी नाना मोटा भारत से कम नी हे। यां की जगे हर दूसरा दन कोई न कोई तीज तेवार मनायो जाय हे। अब्बी ज देखी लो बछ बारस अई थी ज सई ने सोमेती अमावस अय गी। बयराहोण १०८ फेरा दय ने चक्कर खय खय ने पड़ी थी ज ने पाछो अय ग्यो हरतालिका तीज को बरत। अने अब लगत गणपति चौथ, ऋषि पांचम, हलछठ आदि का बरत अय रिया हे। अने अपणो मालवो निमाड़ नवी बऊ की तरे सजी ग्यो हे। तो आज अपण बात करांगा हरतालिका तीज की । यो परब क्यव अने कसे मनायो जाय हे। इको कई माहत्तम हे।
हरतालिका तीज को बरत घणो कठिन हे । इमें सुबे से बयराहोण बिना खाए पिए दनभर निर्जला बरत करे । असी मानता हे कि माता पार्वती ने कठोर तपस्या करी ने भगवान शिव के पति रूप में पायो थो। जद से हरेक बरस भादो मास की शुक्ल पक्ष की तीज का दन सुहागन बयराहोण अपणा धणी (पति) की लंबी उमर अने सौभाग्य वास्ते रखे हे। इनी बरत को नाम हरत (हरण)+आलिका (सखी)=हरतालिका इका वास्ते पड़्यो के देवी पारवती की सखी ने उनको हरण करी ने जंगल में लय जय ने छोड़ी दियो थो ताकि वी शिवजी की पूजा करी ने उनके ब्याव वास्ते मनय सके क्यवकि उनका पिताजी भगवान विष्णु से उनको ब्याव करनो चय रिया था। या पोराणिक कथा प्रचलित हे।
पूजा की विधि :-
आज का दन माता पार्वती अने भगवान शिव की पूजा करी जाय हे । या पूजा प्रदोष काल में करी जाय अने दन में पांच बार करनी चइये । सबका पेला पूजा की तेयारी वास्ते आम का पत्ता से वंदनवार से एक मंडप बनाव। इका बाद एक लकड़ी का पटा पे केल का पत्ता बिछय ने बालू रेत से शिवलिंग अने पार्वती जी की प्रतिमा बनाओ। इका बाद जमीन पे आसन बिछाओ अने बरत को संकल्प लो। फेर शिव पार्वती के वस्त्र, फूल, चंदन, धूप-दीप नैवेद्य चढ़ाओ। इका बाद फल चढ़ाव । विसेस करी ने केला अने काकड़ी तो चड़ानो ज चइए । हुय सके तो मोहल्ला की सब बयराहोण एकट्टठी हुय ने एक जगे ज पूजा करी लो । फेर कथा सुनो। कथा हिन्दी में ज बतय री हूं ताकि सब सीखी जाय।
हरतालिका तीज कथा :-
श्री परम पावन भूमि कैलाश पर्वत पर विशाल वट वृक्ष के नीचे भगवान शिव और पार्वती सभी गणों सहित बाघम्ंबर पर विराजमान थे, बलवान वीरभद्र , भृंगी,श्ऱंगी और न्नदी अपने-अपने पहरों पर सादशिव के दरबार की शोभा बढा रहे थे। इस अवसर पर महारानी पार्वती ने भगवान शिव से दोनों हाथ जोड़कर प्रश्न किया कि हे महेश्वर, मेरे बड़े सौभाग्य हैं जो मैंने आप सरीखे पति को वरण किया, क्या मैं जान सकती हूं कि मैंने वह कौन-सा पुण्य अर्जन किया है, आप अंतर्यामी हैं, मुझ दासी पर वर्णन करने की कृपा करें।
महारानी पार्वती की ऐसी प्रार्थना सुनने पर शंकर जी बोले, तुमने अति उत्तम, पुण्य का संग्रह किया था, जिससे मुझे प्राप्त किया है। वह अति गुप्त व्रत है, लेकिन मैं तुम्हें बताता हूं। वह व्रत भादो मास के शुक्ल पक्ष की तीज के नाम से प्रसिद्ध है। यह व्रत ऐसा है तारों में चंद्रमा, नवग्रहों में सूर्य, वर्णों में ब्राह्मण, देवताओं में गंगा, पुराणों में महाभारत, वेदों में साम, इंद्रियों में मन होता है, इतना श्रेष्ठ है। उन्होंने बताया कि जो तीज हस्त नक्षत्र के दिन पड़े तो वह बहुत पुण्यदायक मानी जाती है। ऐसा सुनकर पार्वती जी ने कहा कि मैंने कब और कैसे तीज व्रत किया था, विस्तार से सुनने की इच्छा है। इतना सुनते ही शंकर जी बोले-भाग्यवान उमा-भारतवर्ष के उत्तर में हिमाचल श्रेष्ठ पर्वत है, उसके राजा हिमाचल हैं, वहीं तुम भाग्यवती रानी मैना से पैदा हुईं थी। तुमने बाल्यकास से ही मेरी अराधना करना शुरू कर दिया था। कुछ उम्र बढञने पर तुमने सहेली के साथ जाकर हिमालय की गुफाओं में मुझे पाने के लिए तप किया।
तुमने गर्मी में बाहर चट्टानों में आसन लगाकर तप किया, बारिश में बाहर पानी में तप किया, सर्दी में पानी में खड़े होकर मेरे ध्यान में लगी रहीं। तुमने इस दौरान वायु सूंघी, पेड़ों के पत्ते खाएं और तुम्हारा शरीर क्षीण हो गया। ऐसी हालत देखकर महाराज हिमाचल को बहुत चिंता हुई। वे तुम्हारे विवाह के लिए चिंता करने लगे। इसी मौके पर नारद देव आए। राजा ने उनका स्वागत किया और उनके आने का कारण पूछा।
तब नारद जी ने कहा- राजन मैं भगवान विष्णु की तरफ से आया हूं। मैं चाहता हूं कि आपकी सुंदर कन्या को योग्य वर प्राप्त हो, सो बैकुंठ निवासी भगवान विष्णु ने आपकी कन्या का वरणस्वीकार किया है, क्या आपको स्वीकार है। राजा हिमांचल ने कहा, महाराज मेरा सौभाग्य है जो कि मेरी कन्या को विष्णु जी ने स्वीकार किया और मैं अवश्य ही उन्हें अपनी कन्या उमा का वाग्यदान करूंगा, यह सुनिश्चित हो जाने पर नारद जी बैकुंठ चले गए और भगवान विष्णु से उनके विवाह का पू्र्ण होना सुनाया। यह सुनकर तुम्हें बहुत दुख हुआ, और तुम अपनी सखी के पास पहुंचकर विलाप करने लगी।तुम्हारा विलाप देखकर सखी ने तुम्हारी इच्छा जानकर कहा, देवी मैं तुन्हें ऐसी गुफा में तपस्या के लिए ले चलूंगी जहां महाराज हिमाचल भी न पा सकें। ऐसा कह उमा सहेली सहित हिमालय की गहन गुफाओं में विलीन हो गईं। तब महाराज हिमाचल घबरा गए, और पार्वती को ढ़ंढ़े हुए विलाप करने लगे कि मैंने विष्णु जी को जो वतन दिया है, वो कैसे पूरा हो सकेगा। ऐसा कहकर बेहोश हो गए। उस समय तुम अपनी सहेली के साथ ही गहन गुफा में पहुंच बिना अन्न और जल के मेरे व्रत को आरंभ करके, नदी की बालू का लिंग लाकर विविध फूलों से पूजन करने लगीं। उस दिन भाद्र मास की तृतीया शुक्ल पक्ष, हस्त नक्षत्र था। तुम्हारी पूजा के कारण मेरा सिंहासन हिल उठा और मैने जाकर तुम्हें दर्शन दिए। वहां जाकर मैंने तुमसे कहा -हे देवी मैं तुम्हारे व्रत और पूजन से अति प्रसन्न हूं। तुम मुझसे अपनी इच्छा मांग सकती हो।
इतना सुन तुमने लज्जित भाव से प्रार्थना की, कि आप अंतर्यामी है, मेरे मन के भाव आपसे छिपे नहीं है, आपको पति रूप में पाना चाहती हूं, इतना सुनकर मैं तुम्हें एवमस्तु इच्छित पूर्ण वरदान देकर अंतरध्यान हो गया। उसके बाद तुम बालू की मूर्ति विसर्जित करने नदी पर गईं जहां नदी तट पर तुम्हारे नगरनिवासी हिमाचल के साथ मिल गए। वे तुमसे मिलकर रोने लगे कि तुम इतने भयंकर वन में जहां सिंह, सांप निवास करते हैं, जहां मनुष्य के प्राण संकट में हो सकते हैं, ऐसे पिता के घर की जाने के निवेदन पर तुमने कहा कि पिताजी आपने मेरा विवाह भगवान विष्णु जी के साथ स्वीकार किया, इस कारण में वन में रहकर अफने प्राण त्याग दूंगी। तब वे बोले, शोक मत कोर, मैं तुम्हारा विवाह भगवान विष्णु के साथ कदापि नहीं करूंगा। उन्हीं सदाशिव के साथ करूंगा। इसके बाद महाराज हिमाचल ने रानी मैना के साथ मेरा और तुम्हारा विवाह किया।
हरतालिका तीज का बरत में इन नेम को पालन करजो हुय सके तो -
1-टिपणी का अनुसार भादो मास का शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के हरतालिका तीज की शुरुआत पांच सितंबर की सुबे 10: 13 मिनट पे हुई ने समापन छह सितंबर की दुफेर 12: 17 मिनट पे होयगा। असी स्थिति में हरतालिका तीज को बरत छह सितंबर के ज करयो जायगा।
2-पांच टेम पूजा करनी चइए जिसे नी बने वा एक दाण पूजा करी ने फलाहार करी सके।
3-निर्जला बरत करो हुय सके तो। नरी लुगाया परोड़े 4 बजे उठी ने चा बणय ने पी ले।
4-एक दाण जसो बरत करोगा वसो ज आगे भी करनो पड़ेगा तो जादे कठिन मत करो। अपणी शक्ति अनुसार करो।
5- राते सोने की मनाही हे। रात भर जागरण करी ने शिव पारवती की पूजा करो। असो कथा में निकले हे के सोने से अजगर बणी जाय।
6- दान धरम करो। सबका प्रति मन में अच्छो भाव रखो । सब जीव होण पे दया रखो।
चोथ का दन सुबे पेली बालू का शिव पारवती मय पटा के नदी, तालाब पे जय ने पूजा करी ने खमय देनो चइए। इनी तरे होय यो हरतालिका तीज को बरत। तो हे शिव पार्वती सबको सुहाग अमर करजो, कुंवारी छोरी होण के अच्छो घर-वर दीजो। अपणी भोली बेन के याद करता रीजो। जे राम जी की।
तमारी अपणी
भोली बेन
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