Thursday, May 4, 2023

जंगल

 


शीर्षक - जंगल

एक जंगल है हमारी यादों में,

हरियाली की अंतहीन चादर को लपेटे,

जहाँ कितने सुक़ून से उगता है सूरज,

कुहासे की परतों से नाजुकी से!


सारे  शहरों की चकाचौन्ध यहीं से निकली हैं,

पूरी दुनिया में पानी के श्रोत यहीं से निसृत हैं,

झोपड़ों,घरों,अट्टालिकाओं के लिए मिली हैं,

बाँस, बल्ली,ईमारती लकड़ी!


यहीं से निकली  हैं सभी  अन्न,फल,फूल की अनमोल सम्पदा,

पीढ़ी दर पीढ़ी जड़ी बूटियों को सहेजी विरासत,

जिनके दम पर चल रहे हैं,

आज आयुर्वेद और हर्बल उत्पादों का विपुल व्यापार,

डाबर,पतंजलि,झंडू,वैद्यनाथ!


इन्हीं कुँज, लताओं,गुह्य गह्वरों से निकले  हैं,

ध्यान,चेतना,प्रार्थना के बीच मंत्र,

भाग दौड़ भरे जीवन में शांति के अमर संदेश।


ये जंगल आज भी कहीं सुदूर अंचलों में समेटे हैं,

निरापद कोने में हमारे आदिवासियों का नैसर्गिक जीवन,

कम से कम में सुख और संतोष से जीने की हसरत,

फ़क़त अपने कबीलाई देवता,गीत,नृत्य,

और कुछ ओझा के झाड़  फूँक के साथ!


महानगरों  की भौतिक संतृप्तता से ऊबकर,

बच्चों की गर्मी छुट्टियों में ले जाते हैं,

उन्ही जंगलों को दिखाने के लिए,

जहाँ से हजारों सालों में निकल कर आई है,

सभ्यता और संस्कृति की यह तथाकथित रौनक।

                श्री संजय कुमार,                   वरिष्ठ साहित्यकार, भोपाल

   (लेखक मध्यप्रदेश वित्त सेवा के वरिष्ठ राजपत्रित अधिकारी हैं।)


मालवी अनुवाद - जंगल


एक जंगल हे अपणी याद होण में,

हरियाली की बिना ओर-छोर की चद्दर लपेटे,

जां कित्ता सक़ून से उगे हे सूरज नारायण, 

कुहरा की परतहोण से नेठू नरमलुच्च तरीका से!


सगळा  सेरहोण की चकचूंदी यां से ज हिटी हे,

आखी दुनिया में पाणी का सोता यां से ज जय रिया हे,

झोपड़ी,घर,अट्टालिकाहोण वास्ते  यां से ज मिली हे,

बास-बल्ली, ईमारती लकड़ीहोण !


यां से ज हिटी  हे सगळी  अन्न,फल-फूल की अमोल समपदा,

पीढ़ी दर पीढ़ी जड़ी बूटिहोण की समाली विरासत,

जिनका दम पे चली रयो हे,

आज आयुरवेद अने हरबल चीजांहोण को गंज वेपार,

डाबर,पतंजलि,झंडू,वेदनाथ!


इनी ज क्यारां, लता अने गुफा की गेरई होण से हिट्यो हे,

ध्यान,चेतना, प्रारथना को बीज मंतर,

भाग-दोड़ भरी जिनगी में शांति को अमर संदेस।


ई जंगल आज भी कां ने कां भोत ज दूर अंचलहोण में लय ने बेठ्या हे,

सुरच्छित खुण्या में अपणा आदिवासी होण की सुभाविक जिनगी,

कम से कम में सुख अने संतोस से जीवा की आस,

सिरफ अपणा कबीलई देवता,गीत,नाचहोण,

अने कुछेक 'जाण' की झाड़  फूंक का साते!


महानगर होण  की सांसारिक  देखा-देखी से घबरय ने,

बाल-बच्चाहोण के उनाळा की छुट्टीहोण में लय जाय हे,

उन ज जंगलहोण के दिखाने वास्ते,

जां से हजार साल में हिटी ने अई हे,

सभ्यता अने संस्कृति की यां झूठ-मूठ की रोनक।



 अनुवादक- हेमलता शर्मा भोली बेन इंदौर मध्यप्रदेश


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