Saturday, March 11, 2023

लघुकथा - बोझिल रिश्ते

 


               बोझिल रिश्ते 

               

               संध्या अपने पिता का घर छोड़कर राजेश के साथ लिव-ईन में रह रही थी । पिता ने उसे समझाने की बहुतेरी कोशिश की - "बेटी हमारे यहां विवाह एक संस्कार है, जिस पर हमारा सामाजिक ढांचा निर्भर करता है और फिर लिव-ईन में तुम्हारा भविष्य भी सुरक्षित नहीं। राजेश से ही ब्याह रचा लो।" 

               "नहीं पापा शादी के बाद के झंझट कौन पाले । अभी तो हम दोनों स्वतंत्र हैं । अपना-अपना काम करते हैं और कोई जिम्मेदारी का बोझ भी नहीं , न सास-ननद और जेठानी का हेडेक । मैं आफिस के लिए लेट हो रही हूं!" कहकर संध्या चलतीं बनी ।

               पिता मन ही मन सोच रहे थे -पारिवारिक रिश्ते और जवाबदारियां नई पीढ़ी के बच्चों को बोझ लग रहे हैं! समाज कहां जा रहा है, क्या हमारी परवरिश में कोई खामी है, इसी उधेड़बुन में कब अपने घर पहुंच गए, पता ही नहीं चला । 

                 

                   स्वरचित

         हेमलता शर्मा भोली बेन 

             इंदौर मध्यप्रदेश 



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