Wednesday, November 2, 2022

मालवी बाल साहित्य की बात ज अलग हे

 "बालपण में जो सुख हे उ बड़ा होने में नी"

शीर्षक-मालवी बाल साहित्य की बात ज अलग हे।

"देस में म.प्र. ने म.प्र. में मालवो कई,

इनी मालवा में तो खूब ज बात हे भई"

       देस को हिरदय स्थल मध्यप्रदेश ने मध्यप्रदेश को हिरदय स्थल मालवो मान्यो जाय हे। मध्यप्रदेश का लगभग तीसरा हिस्सा पे बस्यो मालवो सम जलवायु वास्ते जाण्यो जाय हे। मालवा में लगभग दो करोड़ आबादी निवास करें ने इकी आधी बाल आबादी समझी लो तो इत्ता सारा नाना-मोटा छोरछोरी होण वास्ते गंजसारा खेल ने साहित्य की परम्परा भी पुराणी ज हे । मालवा में बालपणा की मस्ती की बात ज अलग हे । यूं तो अपणो मालवो गंजसारी चीजां होण‌‌‌ के अपणा में समय ने बेठ्यो हे पण आज बात करांगा बाळ साहित्य की ।

             अपणा मालवा में नाना मोटा छोरछोरी होण वास्ते नरा खेल हे पण उमे भी नाना होण का खेल अलग हे जसे- गुल्ली-डंडा, अंटी, सितोल्यो, किरकेट ।   नानी होण का खेल अलग हे जसे- पव्वो, लंगड़ी, पांचा, रस्सी कूद, नदी पहाड़ ।  नरा खेल असा भी हे जो दोय मिली ने खेली लें हे जसे- छिपमछई, पकड़मपाटी, चंगपो, चोपड़  घोड़ाबदामछई, पोशम्बा । मालवी साहित्य में इन खेल होण के भी खूब स्थान मिल्यो हे। हालांकि मालवी को प्रकाशित साहित्य घणो ज कम हे पण मालवा का कुछेक मालवी कवि-लेखक होण ने अपणा लेखन में इन खेल होण के भी सामल करयो हे । जदे ज तो- 

             अक्कड़-बक्कड़ बंबे बो,

             अस्सी - नब्बे पूरा सो,

             सो में लग्यो कालो तागो,

             चोर हिटी ने भाग्यो ।

 सरीखी बाल कविता होण बाल साहित्य में सामल हुई गी हे। मालवा में नरी चीजां अब्बी भी वाचिक परंपरा में हे ।  केने को मतलब यो हे के लोग होण के मु- जवानी याद है नरा खेल जसे- 

         पोशम्भा भई पोशम्भा,

         चाय की पत्ती पोशम्भा,

         दो रूप्या की घड़ी चुरई,

      अब तो जेल में आणो ज पड़ेग़ो,

      जेल की रोटी खाणी ज पड़ेगी,

        जेल को पाणी पीनो ज पड़ेगो।



एक बानगी ओर देखो- 


        घोड़ा बदाम छई, 

        पीछे देखे मार खई ।

असा खेल खेलता हुआ बच्चा होण मालवा का ग्रामीण अंचल में आज भी मली जायगा पण धीरे-धीरे खेल होण को सरूप भी बदल्यो ने बाल साहित्य को भी । पेला बच्चा होण चड्डी बुशट पेरी ने इस्कुल जाता था ने कविता गाता था- 

    बड़े सबेरे मुरगो बोल्यो,

    चिड़िया ने अपणो मुं खोल्यो । 

पण अब्बे जद से अंगरेजी मीडियम का इस्कुल आया तो वी गावा लग्या- 

"टिंकल टिंकल लिटिल ईस्टार।"

सबसे जादे परभाव छोड़यो टीवी ने मोबाइल ने । पेला का जमाना में बड़ा-बूड़ा लोगोण, दादी-नानी बच्चा होण के पशु-पक्षी वाली पंचतंत्र की केणी होण सुनाता था ने उनका जरिया से शिक्षा देता था उन केणी होण में चीकू खरगोश, हाथी दादा, बंदर मामा होता था, साते ज परी होण ने बड़ा-बड़ा नख वाली चुड़ेल होती थी राजा-रानी की कथा होती थी जिनके बच्चा होण बड़ा चाव से सुनता था ने शिक्षा भी लेता था अने उनको मनोरंजन भी हो तो थो पण अबे जमानो बदली ग्यो ।

           टीवी-कंप्यूटर ने बाल साहित्य को सरूप नेठूज बदली दियो । बच्चा होण का खेल कूद में वीडियो गेम ने कारटून सामल हुई ग्या । दन भर टीवी ने कंप्यूटर का सामे बेठा रेवे ने दोडभाग करनो नेठूज भूली ग्या। एंड्राइड मोबाइल फोन ने तो नेठूज नास मारी दियो । बाल साहित्यकार होण ने भी असी ज कविता होण बनानी शुरू करी दी ।

           दरअसल बाल कविता, किस्सा, केणीहोण को उद्देश्य खाली बच्चा होण को मन बेलानो नी रे उनका व्यक्तित्व के परिपक्व बणानो, उनके नेतिक शिक्षा देणो, अच्छा-बुरा को ग्यान करानो भी जरूरी हे क्यवंकि बालक होण ज देस को भविस हे । उनके बालपण से ज वीर महापुरुष होण की केणी आदि सुनाने से उनको चरित्र निर्माण होयगो ने वी आगे चली ने देस को निर्माण करेगा । इससे उनमें अच्छा संस्कार भी आवेगा । तो बाल साहित्य असो होणो चिए जो बच्चा होण के संस्कारी बणाने का साते ज उनका चरित्र के मजबूत बनावे ताकि वी देस का अच्छा नागरिक बणी सके।



           एक हऊ बाल साहित्य में इन बातां को होणो जरूरी हे । पोराणिक कथाहोण जसे - कृष्ण- सुदामा, प्रहलाद, श्रवण कुमार आदि का साते ज ग्यान बढ़ाने वाली जानकारी ग्यान-विज्ञान की बात भी होणी चिए तो बाल जासूसी उपन्यास होण का जरिए उनके रहस्य ने रोमांच को आनंद भी मिलनो चिए । इका साते ज देस का महापुरुष होण की जीवनी, उनपे आधारित कथाहोण के सामल करणो चिए तो पर्यावरण का साते ज जंगल में रेने वाला पशु-पक्षी ने पालतू जिनावर ने उनकी जानकारी भी मिलनी चिए । बाल साहित्य असो होणो चिए जो बच्चा होण की जिज्ञासा के शांत करी सके । आजकल का बाल साहित्यकार होण को ध्यान इनी तरप नी हे  । अने शिक्षा पद्धति में भी सुधार की जरूरत हे ।  हालांकि आजकल सरकार मातृभाषा की वकालत करी री हे । नवी शिक्षा नीति में परिवर्तन भी करी री हे यां खुशी की बात हे । अब्बी हाल में ज केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय का अंग राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने मालवी-निमाड़ी भाषा में पुस्तक होण को अनुवाद करायो हे।  मने भी दो पुस्तक होण को अनुवाद करियो हे । असा कदम जरूर बाल साहित्य की तरफ बच्चा होण को ध्यान खींचेगा ने उनका विकास में भी योगदान देगा । 

   


               स्वलिखित

              हेमलता शर्मा भोली बेन

                लोक साहित्यकार 

                 राजेन्द्र नगर इंदौर

                      मध्यप्रदेश

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