Thursday, November 3, 2022

आव देवउठनी ग्यारस पे तुलसाजी को ब्याव करां

 #dev uthani ekadashi 

#Tulsi Vivah 

आव देवउठनी ग्यारस पे तुलसाजी को ब्याव करां 

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आज देवउठनी ग्यारस अने तुलसा जी को ब्याव हे। 

      "बोर भाजी आंवळा

         उठो देव सांवळा" 

         मालवा में असो बोली ने आज का दन सोया हुआ देव के उठायो जाय हे। अपणा हिंदू धरम में ग्यारस को भोत माहत्तम हे। इमे भी देव उठनी ग्यारस को ओर जादा।  कार्तिक शुक्ल पक्ष की ग्यारस पे भगवान विष्णु जी चार मईना का आराम का बाद उठे हे, एका वास्ते इनी ग्यरस  के देव उठनी ग्यारस  (देव प्रबोधिनी एकादशी) बोल्यो जाय हे ।



         देवउठनी का बारां में भी एक पोराणिक कथा चलन में हे । एक दाण लछमी जी ने स्त्री सुलभ भाव से विष्णु जी से कयो- स्वामी !  तम सदा जागता रो कदी आराम भी करया करो, जग का पालनहार हो इको मतलब यो नी हे के लगातार काम करता रो। तम सोने को नेम बणाव।तो भगवान विष्णु जी ने के सोर बरस का आधार पे चोमासां (वर्षाकाल ) का चार मईना सोने को नेम बणाओ। इनी बखत सब तरे का मांगलिक/ शुभ काम  पे प्रतिबंध रे। 

         धार्मिक मानता होण का अनुसार भगवान विष्णु देवसोनी ग्यारस से लय ने देव उठनी ग्यारस तक पाताल लोक में निवास करे हे। वामन पुराण का अनुसार भगवान विष्णु जी ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी थी तो दानवीर राजा बलि से प्रसन्न खुस हुय ने भगवान विष्णु ने राजा बलि के पाताल लोक को राजो बणय दियो ने वर मांगने को कयो तो राजा बलि ने भगवान विष्णु से पाताल लोक में निवास करने को वरदान मांगी ल्यो ।  जद से ज चार मईना वास्ते भगवान विष्णु पाताल लोक में निवास करे हे । इका कारण धरती पे शुभ अने मांगलिक कार्य नी हुय पाय हे ने फेर देवउठनी ग्यारस से ज शुरू होय। इन चार मईना  के ज चातुर्मास कयो जाय  हे ।



         देव उठनी ग्यारस याने के आज का दन  मंदिर होण में घंटाल बाजे ने  तुलसा जी( लछमी जी को सरूप) को ब्याव शालिगराम (विष्णु जी को सरूप)जी से करायो जाय हे । इका पाछे भी एक पोराणिक कथा चलन में हे।  कथा का अनुसार प्राचीन काल में तुलसी जिनको एक नाम वृंदा हे,शंखचूड़ नाम का असुर की घरवाली थी। शंखचूड़ दुराचारी अने अधर्मी थो,देवता ने मनुष्य सब इनी असुर से त्रस्त था। तुलसी का सतीत्व का कारण सब देवता मिली ने भी शंखचूड़ को वध नी करी पय रया था तो सब  देवता मिली ने भगवान विष्णु अने शिवजी का पास पोच्यां अने उनसे असुर के मारने को उपाव पूछ्यो। उनी टेम भगवान विष्णु जी ने शंखचूड़ को रूप धरी ने तुलसा जी को सतीत्व भंग करी दियो। जिसे शंखचूड़ की शक्ति खत्म हुई गी अने शिवजी ने उको वध करी दियो। बाद में जद तुलसा जी के या बात मालम पड़ी तो उनने भगवान विष्णु  जी के भाटो बणी जाने को शाप दय दियो। विष्णुजी ने तुलसा जी का शाप के सुवीकार करी ने कयो के पृथ्वी पर तम पोधा ने नदी का रूप में रीजो लोगोण तमारी पूजा करेगा । म्हारा भक्त होण अपणो ब्याव करय ने  पुण्य लाभ प्राप्त करेगा । उनी दिन कार्तिक शुक्ल की ग्यारस थी । उनका दन से ज तुलसा जी नेपाल की गंडकी नदी ने पोधा का रूप में आज भी धरती पे हे। गंडकी नदी में ज शालिगराम जी मिले हे। आज का दन जिन धणी बयरा के कन्या नी होय वी भी तुलसा जी को ब्याव करी ने  कन्यादान को पुन कमाय हे। भगवान विष्णु जी के तुलसा जी भोत प्रिय हे। उनका भोग में तुलसा दल जरूर रख्यो जाय हे। तुलसा ब्याव का आयोजन को उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण को संदेसो भी देना हे के सब झाड़-झड़ुकला भगवान का ज सरूप हे, जो अपणे जीवनवायु याने के ऑक्सीजन दे हे तो इनको संरक्षण करनो चिए । 

         अपणा मालवा में असो मान्यो जाय हे के देव उठनी ग्यारस से मोसम बदले हे ने शीत लेर चले। आज से स्यालो शुरू हुय जाय तो अन्नकूट करी ने भगवान के छप्पन भोग लगाय जिमे गोळ(गुड़), सांठा, मेथी,मूली सरीखी भाजी होण को भोग लगे । आज से ज मालवा का लोगोण गोळ को सेवन करनो शुरू करी दे हे। गोळ सांटा से ज बणे हे तो संझा का टेम चार सांटा को मण्डप बणय ने उमे ज तुलसा जी ने सालिगराम जी को ब्याव कराय हे। आज का दन से ज सांटा की नवी फसल की कटई होय तो अपणा हिन्दू धरम में सांटा ने उका रस की मिठास के शुभ मान्यो जाय हे असी ज मिठास घर-परिवार में भी  बणी रे ने सुख-समृद्धि आय ।

         आज का दन सुबे से उठी ने स्नान ध्यान करो, बरत करो। भगवान विष्णु जी का चरण (पगल्या) घर में बणाव ने सात्यो मांडी ने शंख, घंटाल बजय ने देव उठाव । आज का दन सात्विक भोजन करो। तुलसी क्यारा में ११ सरावला लगाव। सांटा को मण्डप बणाव, अन्नकुट करो, गरीब गुरबा होण के जिमाव, दानपुन करो,नद्दी में दीवा छोड़ो । गो माता की पूजा करो । बेल-बछड़ा के पूजो, उनके मेंदी लगाव ने उनको साज सिंगार करो । घर बारने दीवा लगाव, फटीका छोड़ो ने उल्लास का साते छोटी दिवाली मनाव। यो ज इको माहत्तम हे। देवउठनी की घणी घणी बधई ने सुभकामना। 

 

                    तमारी आपणी

                        भोली बेन 

Wednesday, November 2, 2022

मालवी बाल साहित्य की बात ज अलग हे

 "बालपण में जो सुख हे उ बड़ा होने में नी"

शीर्षक-मालवी बाल साहित्य की बात ज अलग हे।

"देस में म.प्र. ने म.प्र. में मालवो कई,

इनी मालवा में तो खूब ज बात हे भई"

       देस को हिरदय स्थल मध्यप्रदेश ने मध्यप्रदेश को हिरदय स्थल मालवो मान्यो जाय हे। मध्यप्रदेश का लगभग तीसरा हिस्सा पे बस्यो मालवो सम जलवायु वास्ते जाण्यो जाय हे। मालवा में लगभग दो करोड़ आबादी निवास करें ने इकी आधी बाल आबादी समझी लो तो इत्ता सारा नाना-मोटा छोरछोरी होण वास्ते गंजसारा खेल ने साहित्य की परम्परा भी पुराणी ज हे । मालवा में बालपणा की मस्ती की बात ज अलग हे । यूं तो अपणो मालवो गंजसारी चीजां होण‌‌‌ के अपणा में समय ने बेठ्यो हे पण आज बात करांगा बाळ साहित्य की ।

             अपणा मालवा में नाना मोटा छोरछोरी होण वास्ते नरा खेल हे पण उमे भी नाना होण का खेल अलग हे जसे- गुल्ली-डंडा, अंटी, सितोल्यो, किरकेट ।   नानी होण का खेल अलग हे जसे- पव्वो, लंगड़ी, पांचा, रस्सी कूद, नदी पहाड़ ।  नरा खेल असा भी हे जो दोय मिली ने खेली लें हे जसे- छिपमछई, पकड़मपाटी, चंगपो, चोपड़  घोड़ाबदामछई, पोशम्बा । मालवी साहित्य में इन खेल होण के भी खूब स्थान मिल्यो हे। हालांकि मालवी को प्रकाशित साहित्य घणो ज कम हे पण मालवा का कुछेक मालवी कवि-लेखक होण ने अपणा लेखन में इन खेल होण के भी सामल करयो हे । जदे ज तो- 

             अक्कड़-बक्कड़ बंबे बो,

             अस्सी - नब्बे पूरा सो,

             सो में लग्यो कालो तागो,

             चोर हिटी ने भाग्यो ।

 सरीखी बाल कविता होण बाल साहित्य में सामल हुई गी हे। मालवा में नरी चीजां अब्बी भी वाचिक परंपरा में हे ।  केने को मतलब यो हे के लोग होण के मु- जवानी याद है नरा खेल जसे- 

         पोशम्भा भई पोशम्भा,

         चाय की पत्ती पोशम्भा,

         दो रूप्या की घड़ी चुरई,

      अब तो जेल में आणो ज पड़ेग़ो,

      जेल की रोटी खाणी ज पड़ेगी,

        जेल को पाणी पीनो ज पड़ेगो।



एक बानगी ओर देखो- 


        घोड़ा बदाम छई, 

        पीछे देखे मार खई ।

असा खेल खेलता हुआ बच्चा होण मालवा का ग्रामीण अंचल में आज भी मली जायगा पण धीरे-धीरे खेल होण को सरूप भी बदल्यो ने बाल साहित्य को भी । पेला बच्चा होण चड्डी बुशट पेरी ने इस्कुल जाता था ने कविता गाता था- 

    बड़े सबेरे मुरगो बोल्यो,

    चिड़िया ने अपणो मुं खोल्यो । 

पण अब्बे जद से अंगरेजी मीडियम का इस्कुल आया तो वी गावा लग्या- 

"टिंकल टिंकल लिटिल ईस्टार।"

सबसे जादे परभाव छोड़यो टीवी ने मोबाइल ने । पेला का जमाना में बड़ा-बूड़ा लोगोण, दादी-नानी बच्चा होण के पशु-पक्षी वाली पंचतंत्र की केणी होण सुनाता था ने उनका जरिया से शिक्षा देता था उन केणी होण में चीकू खरगोश, हाथी दादा, बंदर मामा होता था, साते ज परी होण ने बड़ा-बड़ा नख वाली चुड़ेल होती थी राजा-रानी की कथा होती थी जिनके बच्चा होण बड़ा चाव से सुनता था ने शिक्षा भी लेता था अने उनको मनोरंजन भी हो तो थो पण अबे जमानो बदली ग्यो ।

           टीवी-कंप्यूटर ने बाल साहित्य को सरूप नेठूज बदली दियो । बच्चा होण का खेल कूद में वीडियो गेम ने कारटून सामल हुई ग्या । दन भर टीवी ने कंप्यूटर का सामे बेठा रेवे ने दोडभाग करनो नेठूज भूली ग्या। एंड्राइड मोबाइल फोन ने तो नेठूज नास मारी दियो । बाल साहित्यकार होण ने भी असी ज कविता होण बनानी शुरू करी दी ।

           दरअसल बाल कविता, किस्सा, केणीहोण को उद्देश्य खाली बच्चा होण को मन बेलानो नी रे उनका व्यक्तित्व के परिपक्व बणानो, उनके नेतिक शिक्षा देणो, अच्छा-बुरा को ग्यान करानो भी जरूरी हे क्यवंकि बालक होण ज देस को भविस हे । उनके बालपण से ज वीर महापुरुष होण की केणी आदि सुनाने से उनको चरित्र निर्माण होयगो ने वी आगे चली ने देस को निर्माण करेगा । इससे उनमें अच्छा संस्कार भी आवेगा । तो बाल साहित्य असो होणो चिए जो बच्चा होण के संस्कारी बणाने का साते ज उनका चरित्र के मजबूत बनावे ताकि वी देस का अच्छा नागरिक बणी सके।



           एक हऊ बाल साहित्य में इन बातां को होणो जरूरी हे । पोराणिक कथाहोण जसे - कृष्ण- सुदामा, प्रहलाद, श्रवण कुमार आदि का साते ज ग्यान बढ़ाने वाली जानकारी ग्यान-विज्ञान की बात भी होणी चिए तो बाल जासूसी उपन्यास होण का जरिए उनके रहस्य ने रोमांच को आनंद भी मिलनो चिए । इका साते ज देस का महापुरुष होण की जीवनी, उनपे आधारित कथाहोण के सामल करणो चिए तो पर्यावरण का साते ज जंगल में रेने वाला पशु-पक्षी ने पालतू जिनावर ने उनकी जानकारी भी मिलनी चिए । बाल साहित्य असो होणो चिए जो बच्चा होण की जिज्ञासा के शांत करी सके । आजकल का बाल साहित्यकार होण को ध्यान इनी तरप नी हे  । अने शिक्षा पद्धति में भी सुधार की जरूरत हे ।  हालांकि आजकल सरकार मातृभाषा की वकालत करी री हे । नवी शिक्षा नीति में परिवर्तन भी करी री हे यां खुशी की बात हे । अब्बी हाल में ज केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय का अंग राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने मालवी-निमाड़ी भाषा में पुस्तक होण को अनुवाद करायो हे।  मने भी दो पुस्तक होण को अनुवाद करियो हे । असा कदम जरूर बाल साहित्य की तरफ बच्चा होण को ध्यान खींचेगा ने उनका विकास में भी योगदान देगा । 

   


               स्वलिखित

              हेमलता शर्मा भोली बेन

                लोक साहित्यकार 

                 राजेन्द्र नगर इंदौर

                      मध्यप्रदेश

Tuesday, November 1, 2022

मालवी में आंवळा नोमी को माहत्तम

 शीर्षक -संतान चिए तो आंवळा नोमी मनाव 



कार्तिक मास का शुकल पक्ष की नोमी तिथि के आंवळा नोमी को परब मनायो जाय हे। इके अक्षय नोमी का नाम से भी जाण्यो जाय हे। मानता हे के आंवळा नोमी का दन बरत रखो ने साते त आंवळी की पूजा भी करो, असो करने से सब पाप से मुक्ति मिले हे ने दुख दूर होय हे। इनी साल आंवळा नोमी को परब आज याने के 2 नवंबर 2022 बुधवार के ज मनायो जई रयो हे।

पूजा पाठ को तरीको/विधि:-

इनी दन बयरा होण आंवला का झाड़  नीचे बेठी ने संतान की चायना ने उका अच्छा स्वास्थ्य वास्ते पूजा करे हे। इनी दन आंवला का झाड़ नीचे बेठी ने  भोजन भी करयो जाय हे। आंवला नोमी का मोटा दन बरत कथा के पढ़ने  सुणने को भी विशेष महात्तम होय हे, असो मान्यो जाय हे के किशन भगवान ने बाल लीला छोड़ी ने अपणी जिम्मेदारी समझी ने आज का दन ज मथुरा छोड़ी थी । इनी वास्ते आज का दन के आंवळा नोमी का रूप में पुज्यो जाय हे।


           सुबे परोड़े स्नान करी ने नवा लत्ता पेरी ने आंवळा का झाड़ नीचे बेठी ने उकी पूजा करो ने आंवला की जड़ में जल में काचो दूध मिलय ने चड़ाव, साते ज फूल, माला, सिंदूर, चोखा आदि लगय ने भोग लगाव अने फेर वां ज झाड़ नीचे बेठी ने भोजन करो। इका साते ज झाड़ की गोड़ में कच्चो सूत ने  मोली आठ बार लपेटी ने पूजा करो। उका बाद बरत की कथा सुणो ने आरती करी लो। श्री बयरा होण बरत भी राखे हे।


आंवळा नोमी को माहत्तम:-


आंवळा नोमी का दन दान-पुन को जादा माहत्तम हे, मान्यो जाय हे के कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नोमी तिथि से लय ने कार्तिक सुदी पूनम  तक विष्णु भगवान आंवळा का झाड़ में ज विराजमान रे हे ।  इनी वास्ते अक्षय/आखा नोमी का दन विधिवत आंवला का झाड़ की पूजा करनो ने  इकी छाया में बेठी ने भोजन करनो शुभ मान्यो जाय हे, इनी दन आंवळा का झाड़ की 108 बार परकम्मा करने से सब मनोकामना पूरण हुई जाय हे ।


आंवला नोमी की कथा:-


काशी में एक निःसंतान ने धर्मात्मा बाण्यो रेतो थो । एक दन बाण्या की घरवाली के एक पड़ोसन बोली के  तमारे संतान का रूप में बेटो चिए तो किनी पराया छोर-छोरी की बलि भेरू बाबा का नाम से चढ़य दो , उने या बात अपणा धणी के बतय पण उने मानने से इन्कार करी दियो पण बाण्या की घरवाली मोका की तलाश में लगी री, एक दन एक नानी छोरी के उने भेरू बाबा को नाम लय ने कुड़ा में धक्को दय दियो जिसे छोरी मरी गी  पण उके संतान की जगे आखा डील में कोढ़ हुय ग्यो ने उनी छोरी की आत्मा उके सताने लगी, धणी के पूछने पे उने सगली बात बतय दी

तो पति खूब नाराज हुवो ने बोल्यो गोवध, ब्राह्यण वध ने बाल वध करने वाला का लिए इनी संसार में कां भी जगे नी हे। इका वास्ते तू गंगा तट पे जय ने भगवान को भजन कर ने रोज गंगा में स्नान कर । जदे ज तू इनी कष्ट से मुक्ति पायगा, बाण्या की घरवाली खूब पश्चाताप करने लगी ने रोग मुक्त होने वास्ते गंगामाता की शरण में गई, तब गंगा माता ने उके कार्तिक शुक्ल पक्ष की नोमी तिथि के आंवला का झाड़ की पूजा करी ने आंवळा सेवन की सलाह दी ।  गंगा माता का बताया अनुसार उने आज की तिथि के आंवळी  की विधिविधान से पूजा करी ने आंवला ग्रहण करयो थो ने वां इनी रोग से मुक्त हुई गी थी, इनी पूजा ने बरत का प्रभाव से थोड़ा दन बाद ज उके संतान की प्राप्ति हुई । जद से ज हिंदू होण में इनी बरत के करने को प्रचलन बढ़्यो ने आज तक या परंपरा चली अय री हे। हे आंवला नोमी माता जसे उके संतान दी, उका दुख दूर करया सबकोई को करजो। जे आंवळा नोमी, जे विष्णु भगवान।  

 


              स्वलिखित

           हेमलता शर्मा भोली बेन

            इंदौर मध्यप्रदेश 

गाजबीज माता को बरत -मालवी लोक परम्परा

 गाजबीज माता को बरत -मालवी लोक परम्परा अपणो मालवो निमाड़ तीज तेवार की खान हे। यां की जगे केवात हे - बारा दन का बीस तेवार। केणे को मतलब हे कि...