Saturday, February 19, 2022

कां जई रयो मालवो

 शीर्षक- *कां जई रयो मालवो*



कां जई रयो अपणो मालवो,

कसे कूं ने किके समझावां ।

मालवी लोगोण का साते जाती जई री पुराणी बातां,

मालवी संस्कृति खोती जई री किने समझावां ।।


भूलता जय रया  मालवा की बातां

सगला फेसन में भराणा ।

बरसंगाठ कई होय नी मालम नवी पीढ़ी के,

हेप्पी बर्डे ने केक काटने में हुई रया दीवाना ।।


भूली ग्या सूबे परभात्या गीत कसे गावां,

नी आवे कोई के बन्ना-बन्नी कसे मांण्डनो बनावां ।

नाच नी आवे मटकी को कसे हाथ-पांव चलावां,

डीजे में डुब्या याद रयो डिस्को में कम्मर मटकावां ।। 


भूली ग्या मोटा को आदर ने नाना पे पिरेम भाव,

हऊ हे अब्बी तलवार म्यान में ज हे, खुसी मनावां ।

चेती जाव सगला कई नी बिगड्यो टेम हे अब्बी भी,

मालवा ने मालवी के पकड़ी ने राखो सगला,

आव सब मिली ने अपण सुभ काज करी जावां ।।

                   स्वरचित

        हेमलता शर्मा 'भोली बेन'

              इंदौर, मध्यप्रदेश

4 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना
    मालवी सच मे बहुत मीठी बोली है इसके उत्थान के लिए
    आपके द्वारा किये जा रहे प्रयास प्रशंशनीय है
    बहुत बहुत शुभ कामनाएं

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    1. धन्यवाद आदरणीय 😀❤️💐🙏🏻

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    2. धन्यवाद आदरणीय 😀❤️💐🙏🏻

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    3. सहृदय आभार आदरणीय 😀🙏🏻💐

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