*मालवी निमाड़ी साहित्य शोध संस्थान का प्रथम लोकार्पण सम्पन्न*
*किनारा की खोज ने दो संस्कृतियों को जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया है*- प्रो.शेलेन्द्र शर्मा
*बोली में रचना कर्म भाषा का पहला पड़ाव* डॉ विकास दवे
23 मई, 2021 रविवार
अनुवाद कार्य महज दो भाषाओं को जोड़ने का काम नहीं है बल्कि इससे चारों और संवेदनाओं के तट बंधों को तोड़ते हुए दो संस्कृतियों और परंपराओं को जोड़ने का कार्य संभव हो पाता है और इसे परिणीत किया है मालवीमना हेमलता शर्मा भोली बेन ने जिन्होंने हरिशंकर परसाई जी के लघु उपन्यास तट की खोज का मालवी रूपांतरण किया है । यह बात मालवी निमाड़ी साहित्य शोध संस्थान के पटल पर 'किनारा की खोज' अपणो मालवो भाग दो पुस्तक के ऑनलाइन लोकार्पण समारोह में कही । वे कहते हैं कि मालवी में इसे अनुदित रूप में लाने से कई नए पाठक इसका आस्वाद ले सकेंगे। यह उपन्यास परसाई जी के मिजाज और तेवर से हटकर है और यह बेहद प्रसन्नता का विषय है हेमलता शर्मा भोली बेन अनेक माध्यमों से मालवी सेवा कर रही है।
कार्यक्रम का शुभारंभ शोभा रानी तिवारी की सरस्वती वंदना से हुआ ।
इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉक्टर विकास दवे कहते हैं कि बोलियों में रचना कर्म करना वास्तव में बोलियों की बहुत बड़ी सेवा होती है । बोली को भाषा बनने की यात्रा में यह सबसे महत्वपूर्ण कारक होता है । जब भी मालवी को बोली से भाषा बनाने की दिशा में कोई बड़ा अभियान चलेगा तब हेमलता जी के किए हुए कार्यों को बहुत ही सम्मान के साथ रेखांकित किया जाएगा, क्योंकि लगातार मालवी में मूल लेखन के साथ इन्होंने व्यंग्य सम्राट हरिशंकर परसाई जी के उपन्यास 'तट की खोज' का अपनी मातृ बोली में अनुवाद करके मालवी की सेवा का संकल्प प्रदर्शित किया है । यह उपन्यास मानवीय संवेदनाओं से लबालब भरा है जिसे मालवी में पढ़ना रोचक होगा।
इस अवसर पर विशेष अतिथि की भूमिका अदा कर रही मालवा प्रांत की अध्यक्षा माया मालवेंन्द्र बदेका ने मीठी मालवी में भोली बेन को आशीर्वाद प्रदान करते हुए पुस्तक के सार को रेखांकित किया। इसी प्रकार संस्थान की अध्यक्ष डा.स्वाति तिवारी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जिस प्रकार परसाई जी का उपन्यास तट की खोज कालजयी रहा है उसी प्रकार मालवी निमाड़ी साहित्य शोध संस्थान की सचिव भोली बेन द्वारा किया गया मालवी रूपांतरण *किनारा की खोज* भी कालजयी कृति साबित होगी ।
संपादकीय में भोली बेन ने अपने मन की बात साझा करते हुए लिखा कि मेरा मालवी का समस्त साहित्य मालवी प्रेमियों के लिए निशुल्क रहेगा । मालवी बोली को भाषा बनाने की दिशा में निरन्तर प्रयासरत हूं।
मालव मयूर के नाम से प्रसिद्ध आनंदराव दुबे की सुपुत्री एवं मालवी कवयित्री ने भोली बेन को प्रख्यात मालवी गद्यकार की उपमा प्रदान की तो वहीं विशेष अतिथि के रूप में कवि संजय परसाई 'सरल' ने पुस्तक और भोली बेन की भूरी-भूरी प्रशंसा की । वरिष्ठ साहित्यकार हरमोहन नेमा ने इस कार्य हेतु भोली बेन को साधुवाद ज्ञापित किया। आभार प्रदर्शन गीतकार अलक्षेन्द्र व्यास ने किया । यशोधरा भटनागर ने अपने संचालन से सभी को बांधे रखा। सभी वरिष्ठ जनों ने उनके संचालन की भूरी-भूरी प्रशंसा की।
इस अवसर पर हरिशंकर परसाई जी के भतीजे मुकेश दीवान सहित चेतना भाटी, हरमोहन नेमा, जीडी अग्रवाल, डिस्ट्रिक्ट कमांडेंट महेश हनोतिया, जनसंपर्क अधिकारी प्रलय श्रीवास्तव, वित्त सेवा अधिकारी अजय चौबे, मुकेश शर्मा, बालीवुड अभिनेता राघवेंद्र तिवारी, रागिनी शर्मा, रश्मि चौधरी, अपर्णा तिवारी, सुषमा व्यास , शशि निगम, शशिकला अवस्थी, जनसंपर्क अधिकारी प्रलय श्रीवास्तव, अशोक मनवानी, वित्त सेवा अधिकारी अजय चौबे, की एन सिंह, आर.के.शर्मा, देवध दरवाई,गजानंद पाण्डेय,रानी नारंग, शरद द्विवेदी, पल्लवी जोशी, ज्योति बेस भदौरिया, विनीता तिवारी, कार्तिकेय त्रिपाठी, शरद द्विवेदी, ऋषिराज निमाड़े, पंकजा सोनवलकर, प्रतिभा जोशी,अनिल ओझा, सतनामी 'सरल' दादा भीम सिंह पंवार, प्रदीप नाईक, स्वामी मुस्कुराके, वासुदेव पटेल तंवर, विक्रम क्षीरसागर, कुसुम सोगानी, मंजूला भूतड़ा, ललित मंडलोई, जितेंद्र शिवहरे, विजय पाठक, पवन मकवाना, रूपाली त्रिवेदी, प्रतिभा जोशी, राममूरत राही, संजय बेजार,विक्रम क्षीरसागर, अश्विनी त्रिवेदी आदि साहित्यकार मौजूद थे।
Thats awasome congrats thanks a lot for sharing
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