Tuesday, September 17, 2024

गाजबीज माता को बरत -मालवी लोक परम्परा

 गाजबीज माता को बरत -मालवी लोक परम्परा

अपणो मालवो निमाड़ तीज तेवार की खान हे। यां की जगे केवात हे - बारा दन का बीस तेवार। केणे को मतलब हे कि रोन नित नवा तीज तेवार मनाया जाय । कोई दन असो नी हिटे के आज कोई देवी देवता के पूज्यो नी जाय या आज कय नी हे। यां का लोगोण अपणी लोक परम्परा को पालन करे , या अच्छी बात हे। सनातन धर्म का पौराणिक कैलेंडर का अनुसार  गाज बीज माता को बरत भादो मास की द्वितीया तिथि के रख्यो जाय हे । नरा लोगोण अपनी सुविधा से भादो मास में कोई सा भी दन गाज माता को बरत रखी सके। 


क्यों किया जाता है - यो बरत घर की सुख-समृद्धि अने शांति वास्ते रख्यो जाय हे। अने निपूती संतान वास्ते भी यो बरत करे। आज का दन बयरा होण एकासनो करे मतलब कि एक ज टेम भोजन करें साते ज गाज बीज माता की पूजा करे। 

पूजा विधि - गाज बीज माता की पूजा विधि इनी तरे हे- एक लकड़ी का पाट्या का उपर काली मट्टी से गाज बीज माता का पुतला बनाया जाय । घोड़ा का उपर बेठ्या हुवा आदमी ओरत अने बच्चा को अने शिवलिंग अने पारवती जी को पुतलो बनायो जाय। मछ-कछ की तलई बनई जाय । गाज बीज माता की पूजा शुरू करने से पेला बयरा होण एक-दूसरा के कलावो (दोरो) बांध हे. इका बाद बयरा होन माता को भोग / प्रसाद(रोट अने चावल की खीर) बनाय  हे । घर में जित्ता आदमी होन रे उका दुगना रोट बणय ने पाट्या का उपर रख्या जाय । अने खीर को भोग लगय ने सोलह श्रृंगार करी ने बयरा होन पूजा करे। फेर कथा सुने। गाज बीज माता की कथा पढ़ने/सुनने का पेला जिन बयरा होन ने बरत रख्यो हे, उनके हाथ में बंध्या कलावा के खोलनो होय । इके मुट्ठी में रखी ने रोट को परसाद सात बार तोड़ी ने हाथ में रखी ने धूप दीप करें । अब इकी कथा  शुरू होय । 

गाज बीज माता के व्रत की कथा-

10 तरे की कथा केणी प्रचलित हे। कोई सी भी एक सुनी लो। कथा का बाद रोट आदमी होन के खाने वास्ते दिया जाय अने बयरा होन संजा का टेम जीमी ले। केणी हिन्दी में ज सुनऊंगा ताकि सब सीखी जाय। 

एक गांव में जमींदार रहता था। जब भादो का महीना आया तो जमींदार की पत्नी ने अपनी दासी से कहा कि हम गरज खोलेंगे जाओ तुम ब्राह्मण के यहां से जाकर गरज ले आओ। पहले समय में ब्राह्मण के यहां से ही गरज आया करते थे। रानी की बात मानकर दासी ब्राह्मण के घर जाकर गरज ले आई। फिर दासी और रानी ने गरज को बांधे। इसके बाद कथा कही। फिर पूजन करने के बाद गरज को खोले। इतने में रानी ने देखा की जमींदार साहब घर वापस आ रहे हैं। इसके कारण वो सभी गरज रानी ने नाथ के नीचे छिपा दिए। लेकिन उनकी खूशबू उनके पति को आ रही थी।

उन्होंने हर जगह देखा की यह खुशबू कहां से आ रही है। लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला। इसके बाद वो नाद के पास पहुंचे तो गरज की खूशबू तेज होने लगी। उन्होंने जैसे ही नाद हटाया तो उसके नीचे से गरज मिले। उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा की यह क्या है और इसे कौन खाएगा, तो उन्होंने बताया कि यह गरज हैं, जो गाज माता के व्रत में बनाएं जाते हैं। इसे घर की महिलाएं खाती हैं। फिर इसपर जमींदार ने कहा की यह तो बहुत मोटी रोटियां हैं इसे कैसे कोई खास सकता है। ऐसा कहकर उन्होंने वो सारे गरज गाय और कुत्ते को खिला दिए। इसके बाद उनके घर में निर्धनता का वास हो गया। एक दिन जमींदार ने कहा तुम यहां रहो। हमें सभी जानते हैं तो कोई कार्य नहीं देगा। हम परदेस जाएंगे। इसपर रानी और दासी ने भी कहां हम भी जाएंगे। वह तीनों लोग अपना राज्य छोड़कर निकल गए।

रास्ते में जमींदार को एक मछलियों से भरा तालाब मिला। उन्होंने पत्नी से कहा की आप मछलियों को भूनकर रखना मैं नहाकर आता हूं। पत्नी ने हां कर दी। जैसे ही उनकी पत्नी ने कढ़ाई में मछली डाली वो कूदकर पानी में चली गईं। जब जमींदार नहाकर आए उन्होंने पत्नी से खाना मांगा। पत्नी ने कहा सारी मछलियां मैंने खा ली है। आपके लिए कुछ नहीं बचा। फिर वो आगे चलने लगे। उन्हें तीतर मिले। जमींदार ने तीतर पकड़ने और उन्हें अपनी पत्नी को पकाने के लिए कहा। तीतर पकने से पहले उड़ गए। फिर वो सभी लोग भूखे रहे। आगे उन्हें अपना दोस्त मिला, वो उन्हें घर ले आए।

दोस्त के घर जाकर देखा तो खूंटी हार निगल रही थी। इसपर जमींदार ने अपनी पत्नी से कहा की यहां से चलते हैं, वरना हमारे ऊपर चोरी का इल्जाम लग जाएगा, वो खाना खाकर वहां से रात के समय निकल गए। इसके बाद वो अपनी बहन के राज्य में पहुंचे। बहन ने मंत्रियों से पूछा भाई किस अवस्था में आ रहे हैं। उन्होंने कहा वो पैदल और बेहद बुरी अवस्था में आ रहे हैं। बहन ने कहा कि भाई को कुम्हार के कमरे में रुकने को बोला और घर से खाने के साथ छिपाकर हीरे जवाहरात भेजे जो कोयला हो गए। जमींदार उन्हें वहीं गाड़ कर आगे चल दिया।वह एक राज्य में पहुंचकर घर-घर जाकर काम करने लगते हैं। फिर एक साल बाद भादो का महीना आता है। जमींदार की पत्नी गाजबीज माता का व्रत रख गरज खोलती है। उनके दिन बदल जाते हैं। तब जमींदार अपनी पत्नी से कहता है कि देखो जब दिन बुरे थे, तो सारे संकट हमारे साथ चले आ रहे थे। अब दिन अच्छे हुए हैं, तो हमारे सारे संकट कट गए हैं।

इसलिए हर साल भादो के महीने में गाजबीज माता का व्रत किया जाता है, ताकि घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहे।

तो अपणी लोक परम्परा होन को पालन करता रीजो अने भोली बेन से राम राम करता रीजो। जे राम जी की। 

 

                             तमारी अपणी 

                                भोली बेन 





Friday, September 6, 2024

हरतालिका तीज-मालवा-निमाड़ की बयरा होण को सुहाग बरत

 हरतालिका तीज-मालवा-निमाड़ की बयरा होण को सुहाग बरत 

              असो बोल्यो जाय हे कि अपणो भारत तीज तेवार को देस हे तो अपणो मालवो-निमाड़ भी नाना मोटा भारत से कम नी हे। यां की जगे हर दूसरा दन कोई न कोई तीज तेवार मनायो जाय हे। अब्बी ज देखी लो बछ बारस अई थी ज सई ने सोमेती अमावस अय गी। बयराहोण १०८ फेरा दय ने चक्कर खय खय ने पड़ी थी ज ने पाछो अय ग्यो हरतालिका तीज को बरत। अने अब लगत गणपति चौथ, ऋषि पांचम, हलछठ आदि का बरत अय रिया हे। अने अपणो मालवो निमाड़ नवी बऊ की तरे सजी ग्यो हे। तो आज अपण बात करांगा हरतालिका तीज की । यो परब क्यव अने कसे मनायो जाय हे। इको कई माहत्तम हे। 

                        हरतालिका तीज को बरत घणो कठिन हे । इमें सुबे से बयराहोण बिना खाए पिए दनभर निर्जला बरत करे । असी मानता हे कि माता पार्वती ने कठोर तपस्या करी ने भगवान शिव के पति रूप में पायो थो। जद से हरेक बरस भादो मास की शुक्ल पक्ष की तीज का दन सुहागन बयराहोण अपणा धणी (पति) की लंबी उमर अने सौभाग्य वास्ते रखे हे। इनी बरत को नाम हरत (हरण)+आलिका (सखी)=हरतालिका इका वास्ते पड़्यो के देवी पारवती की सखी ने उनको हरण करी ने जंगल में लय जय ने छोड़ी दियो थो ताकि वी शिवजी की पूजा करी ने उनके ब्याव वास्ते मनय सके क्यवकि उनका पिताजी भगवान विष्णु से उनको ब्याव करनो चय रिया था। या पोराणिक कथा प्रचलित हे। 

पूजा की विधि :-   

             आज का दन माता पार्वती अने भगवान शिव की पूजा करी जाय हे । या पूजा प्रदोष काल में करी जाय अने दन में पांच बार करनी चइये । सबका पेला पूजा की तेयारी वास्ते आम का पत्ता से वंदनवार से एक मंडप बनाव। इका बाद एक लकड़ी का पटा पे केल का पत्ता बिछय ने बालू रेत से शिवलिंग अने पार्वती जी की प्रतिमा बनाओ। इका बाद जमीन पे आसन बिछाओ अने बरत  को संकल्प लो। फेर शिव पार्वती के वस्त्र, फूल, चंदन, धूप-दीप नैवेद्य चढ़ाओ। इका बाद फल चढ़ाव । विसेस करी ने केला अने काकड़ी तो चड़ानो ज चइए ।  हुय सके तो मोहल्ला की सब बयराहोण  एकट्टठी हुय ने एक जगे ज पूजा करी लो । फेर कथा सुनो। कथा हिन्दी में ज बतय री हूं ताकि सब सीखी जाय। 

हरतालिका तीज कथा :-

         श्री परम पावन भूमि कैलाश पर्वत पर विशाल वट वृक्ष के नीचे भगवान शिव और पार्वती सभी गणों सहित बाघम्ंबर पर विराजमान थे, बलवान वीरभद्र , भृंगी,श्ऱंगी और न्नदी अपने-अपने पहरों पर सादशिव के दरबार की शोभा बढा रहे थे। इस अवसर पर महारानी पार्वती ने भगवान शिव से दोनों हाथ जोड़कर प्रश्न किया कि हे महेश्वर, मेरे बड़े सौभाग्य हैं जो मैंने आप सरीखे पति को वरण किया, क्या मैं जान सकती हूं कि मैंने वह कौन-सा पुण्य अर्जन किया है, आप अंतर्यामी हैं, मुझ दासी पर वर्णन करने की कृपा करें।

             महारानी पार्वती की ऐसी प्रार्थना सुनने पर शंकर जी बोले, तुमने अति उत्तम, पुण्य का संग्रह किया था, जिससे मुझे प्राप्त किया है। वह अति गुप्त व्रत है, लेकिन मैं तुम्हें बताता हूं। वह व्रत भादो मास के शुक्ल पक्ष की तीज के नाम से प्रसिद्ध है। यह व्रत ऐसा है तारों में चंद्रमा, नवग्रहों में सूर्य, वर्णों में ब्राह्मण, देवताओं में गंगा, पुराणों में महाभारत, वेदों में साम, इंद्रियों में मन होता है, इतना श्रेष्ठ है। उन्होंने बताया कि जो तीज हस्त नक्षत्र के दिन पड़े तो वह बहुत पुण्यदायक मानी जाती है। ऐसा सुनकर पार्वती जी ने कहा कि मैंने कब और कैसे तीज व्रत किया था, विस्तार से सुनने की इच्छा है। इतना सुनते ही शंकर जी बोले-भाग्यवान उमा-भारतवर्ष के उत्तर में हिमाचल श्रेष्ठ पर्वत है, उसके राजा हिमाचल हैं, वहीं तुम भाग्यवती रानी मैना से पैदा हुईं थी। तुमने बाल्यकास से ही मेरी अराधना करना शुरू कर दिया था। कुछ उम्र बढञने पर तुमने सहेली के साथ जाकर हिमालय की गुफाओं में मुझे पाने के लिए तप किया। 

                          तुमने गर्मी में बाहर चट्टानों में आसन लगाकर तप किया, बारिश में बाहर पानी में तप किया, सर्दी में पानी में खड़े होकर मेरे ध्यान में लगी रहीं। तुमने इस दौरान वायु सूंघी, पेड़ों के पत्ते खाएं और तुम्हारा शरीर क्षीण हो गया। ऐसी हालत देखकर महाराज हिमाचल को बहुत चिंता हुई। वे तुम्हारे विवाह के लिए चिंता करने लगे। इसी मौके पर नारद देव आए। राजा ने उनका स्वागत किया और उनके आने का कारण पूछा।

           तब नारद जी ने कहा- राजन मैं भगवान विष्णु की तरफ से आया हूं। मैं चाहता हूं कि आपकी सुंदर कन्या को योग्य वर प्राप्त हो, सो बैकुंठ निवासी भगवान विष्णु ने आपकी कन्या का वरणस्वीकार किया है, क्या आपको स्वीकार है। राजा हिमांचल ने कहा, महाराज मेरा सौभाग्य है जो कि मेरी कन्या को विष्णु जी ने स्वीकार किया और मैं अवश्य ही उन्हें अपनी कन्या उमा का वाग्यदान करूंगा, यह सुनिश्चित हो जाने पर नारद जी बैकुंठ चले गए और भगवान विष्णु से उनके विवाह का पू्र्ण होना सुनाया। यह सुनकर तुम्हें बहुत दुख हुआ, और तुम अपनी सखी के पास पहुंचकर विलाप करने लगी।तुम्हारा विलाप देखकर सखी ने तुम्हारी इच्छा जानकर कहा, देवी मैं तुन्हें ऐसी गुफा में तपस्या के लिए ले चलूंगी जहां महाराज हिमाचल भी न पा सकें। ऐसा कह उमा सहेली सहित हिमालय की गहन गुफाओं में विलीन हो गईं। तब महाराज हिमाचल घबरा गए, और पार्वती को ढ़ंढ़े हुए विलाप करने लगे कि मैंने विष्णु जी को जो वतन दिया है, वो कैसे पूरा हो सकेगा। ऐसा कहकर बेहोश हो गए। उस समय तुम अपनी सहेली के साथ ही गहन गुफा में पहुंच बिना अन्न और जल के मेरे व्रत को आरंभ करके, नदी की बालू का लिंग लाकर विविध फूलों से पूजन करने लगीं। उस दिन भाद्र मास की तृतीया शुक्ल पक्ष, हस्त नक्षत्र था। तुम्हारी पूजा के कारण मेरा सिंहासन हिल उठा और मैने जाकर तुम्हें दर्शन दिए। वहां जाकर मैंने तुमसे कहा -हे देवी मैं तुम्हारे व्रत और पूजन से अति प्रसन्न हूं। तुम मुझसे अपनी इच्छा मांग सकती हो।

             इतना सुन तुमने लज्जित भाव से प्रार्थना की, कि आप अंतर्यामी है, मेरे मन के भाव आपसे छिपे नहीं है, आपको पति रूप में पाना चाहती हूं, इतना सुनकर मैं तुम्हें एवमस्तु इच्छित पूर्ण वरदान देकर अंतरध्यान हो गया। उसके बाद तुम बालू की मूर्ति विसर्जित करने नदी पर गईं जहां नदी तट पर तुम्हारे नगरनिवासी हिमाचल के साथ मिल गए। वे तुमसे मिलकर रोने लगे कि तुम इतने भयंकर वन में जहां सिंह, सांप निवास करते हैं, जहां मनुष्य के प्राण संकट में हो सकते हैं, ऐसे पिता के घर की जाने के निवेदन पर तुमने कहा कि पिताजी आपने मेरा विवाह भगवान विष्णु जी के साथ स्वीकार किया, इस कारण में वन में रहकर अफने प्राण त्याग दूंगी। तब वे बोले, शोक मत कोर, मैं तुम्हारा विवाह भगवान विष्णु के साथ कदापि नहीं करूंगा। उन्हीं सदाशिव के साथ करूंगा। इसके बाद महाराज हिमाचल ने रानी मैना के साथ मेरा और तुम्हारा विवाह किया।

हरतालिका तीज का बरत में इन नेम को पालन करजो हुय सके तो -

1-टिपणी का अनुसार भादो मास का शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के हरतालिका तीज की शुरुआत पांच सितंबर की सुबे 10: 13 मिनट पे हुई ने समापन छह सितंबर की दुफेर 12: 17 मिनट पे होयगा। असी स्थिति में हरतालिका तीज को बरत छह सितंबर के ज करयो जायगा।

2-पांच टेम पूजा करनी चइए जिसे नी बने वा एक दाण पूजा करी ने फलाहार करी सके।

3-निर्जला बरत करो हुय सके तो। नरी लुगाया परोड़े 4 बजे उठी ने चा बणय ने पी ले। 

4-एक दाण जसो बरत करोगा वसो ज आगे भी करनो पड़ेगा तो जादे कठिन मत करो। अपणी शक्ति अनुसार करो। 

5- राते सोने की मनाही हे। रात भर जागरण करी ने शिव पारवती की पूजा करो। असो कथा में निकले हे के सोने से अजगर बणी जाय। 

6- दान धरम करो। सबका प्रति मन में अच्छो भाव रखो । सब जीव होण पे दया रखो। 

चोथ का दन सुबे पेली बालू का शिव पारवती मय पटा के नदी, तालाब पे जय ने पूजा करी ने खमय देनो चइए। इनी तरे होय यो हरतालिका तीज को बरत। तो हे शिव पार्वती सबको सुहाग अमर करजो, कुंवारी छोरी होण के अच्छो घर-वर दीजो। अपणी भोली बेन के याद करता रीजो। जे राम जी की।


                                      तमारी अपणी

        भोली बेन 





Friday, August 30, 2024

बछ बारस मालवा-निमाड़ को मोटो परब

   

 

            आज हे बछ बारस। मालवा-निमाड़ को मोटो परब । नरा लोगोण ने तो सुण्यो भी नी होयगो। पण नवी पीढ़ी के अपणा परब, संस्कृति, तीज तेवार ने परम्परा होण का बारा में मालम होणो चइए। तो आव जाणा कई होय बछ बारस। 

               बछ बारस को परब भादो मास का कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि के मनायो जाय हे। इके गोवत्स द्वादशी का नाम से भी जाण्यो जाय हे । आज को बरत मां होण अपना बेटा की लंबी आयु वास्ते करे हे। इका पीछे भी पौराणिक कथा प्रचलित हे। पेला पूजा विधि समझी लो फेर केणी भी सुणय दुवा।     


बछ बारस की पूजा विधि-

          इना दन बयरा होण परोड़े स्नान करी ने लाल-पीली चुनरी पेरी ओढ़ी ने पूजा वास्ते थाली तेयार करे जिमे कंकु,अबीर, हल्दी , वस्त्र ,जल को लोटो रखी ने गो माता की बछड़ा का साते पूजा करे।  गो माता अने बछड़ा के नवा वस्त्र धारण करावे। उनको सिंगार करे। उनका उपर हल्दी, कंकू का हाथ से छापा लगय ने उनके पूजा वास्ते तेयार करे। एक दन पेला ज ग्वाला के न्योतो दय दे के गो माता को सिंगार करी ने बछड़ा साते लय आजो। फेर मोहल्ला की सगली बयरा होण भेली हुई ने गो माता ने बछड़ा की पूजा करे। 

नियम-

          आज का दन बयरा होण निराहार बरत करे। गो माता की पूजा करी ने मोटो अनाज जुवार बाजरा की रोटी बणय ने खाय। आज का दन चक्कू, केंची, सुई को प्रयोग नी‌ करे अने चक्कू से कटी साग भाजी भी नी खाय।  असो नेम राखे हे। 

          

बछ बारस की कहानी(केणी)- केणी हिन्दी में कय री हू ताकि सब सीखी जाय। मालवी में सुनने वास्ते म्हारा यूट्यूब चेनल पे चली जाजो । गूगल पे भोली बेन लिखी ने सर्च करी लीजो हो।

एक समय की बात है किसी गांव में एक साहूकार रहता था। जिसके सात बेटे और ढेर सारे पोते थे। एक दिन गांव में भीषण अकाल पड़ गया। तब साहूकार ने गांव में एक तालाब बनवाया। लेकिन उस तालाब में कई साल तक पानी नहीं आया। तब साहूकार ने पंडितों से इसका उपाय पूछा। पंडितो ने कहा कि तुम्हें अपने बड़े बेटे या बड़े पोते की बलि देनी होगी तब यहां पानी आ सकता है। साहूकार ने गांव की भलाई का सोचते हुए बलि देने का निर्णय किया।

साहूकार ने अपनी बहु को एक पोते हंसराज के साथ उसके पीहर भेज दिया और बड़े पोते को अपने पास रख लिया कहते हैं उसका नाम बच्छराज था। उस तरह से बच्छराज की बलि दे दी गई। जिसके बाद तालाब में पानी भी आ गया। इसके बाद साहूकार ने तालाब पर ही एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया। लेकिन अपने पोते की बलि के झिझक में वह अपनी बहू को बुलावा नहीं भेज पाया। बहु के भाई ने कहा तेरे यहां पर इतना बड़ा उत्सव है पर तेरे ससुर ने तुझे क्यों नहीं बुलाया ? मुझे बुलाया है, मैं जा रहा हूं।

बहू बोली शायद काम में वे भूल गए होंगे और अपने घर जाने में कैसी शर्म? मैं भी चलती हूं। जब बहू घर पहुंची तो सास ससुर डरने लगे कि बहु को पता लग गया तो क्या जवाब देंगे। फिर भी सास हिम्मत करके बोली बहू चलो बछ बारस की पूजा करने तालाब पर चलते हैं। दोनों जाकर पूजा करने लगीं। सास बोली, बहु तालाब की किनार खंडित करो।

            बहु बोली मेरे तो दो पुत्र हैं हंसराज और बच्छराज फिर मैं खंडित क्यों करूं। सास बोली जैसा मैं कहू वैसे करो। बहू ने अपनी सास की बात मानते हुए किनार खंडित की और कहा “आओ मेरे हंसराज , बच्छराज लडडू उठाओ। ” उसकी सास मन में भगवान से प्रार्थना करने लगी कि हे बछ बारस माता मेरी लाज रखना। कुछ देर बाद तालाब की मिट्टी में लिपटा बच्छराज व हंसराज दोनों दौड़े चले आये। बहू पूछने लगी “सासू मां ये सब क्या है ?” तब सास ने बहू को सारी बात बता दी और कहा भगवान ने मेरा सत रखा है। आज भगवान की कृपा से सबकुछ सही हो गया। हे बछ बारस माता ! जैसे सास का सत रखा वैसे ही सभी का रखना। जैसे बहू की बेटे को अमर किया वैसे सबके बेटों को करना। 

   


                     मिलता-जुलता रीजो।  जे राम जी की 😀🙏

                              तमारी अपणी               भोली बेन 

Thursday, August 8, 2024

मालवा-निमाड़ को परब-नाग पंचमी

 नाग पंचमी-मालवा-निमाड़ को परब 

         अपणा मालवा निमाड़ को पारंपरिक परब हे नाग पंचमी जिके नागपाचम बोल्यो जाय हे जो श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के मनायो जाय हे। आज 9 अगस्त,2024 शुक्रवार का दन यो परब आयो हे। सगला जणा के खूब बधई , आव जाणा के आज का दन कई होय।

            असी मानता हे कि अपणी धरती माता शेषनाग का फण पे टिकी हे अणे अपण इनी ज धरती पे रय रिया हा तो शेषनाग अने उनका कुल का प्रति आभार मानने वास्ते मालवा निमाड़ का लोगोण यो नागपाचम को परब घणी धूमधाम से मनाय हे। अने मनानो भी चिए। अपणी भारतीय परम्परा हे कि अपण प्रकृति, जीव सबके प्रति आभार व्यक्त करां हां तो बस यो परब भी उनी ज परम्परा को निर्वहन हे। 

           इना दन भक्तजन अपणा परिवार के बुरई से बचाणे अने बरकत वास्ते नागदेवता की पूजा करे अने उनको आसीरवाद ले हे। वसे भी सावण को मईनो चली रयो हे तो भोलेनाथ की पूजा तो कराज हां तो नागदेवता की पूजा भी करी लां। सवेरमाय से ढोली घरे-घर अय ने ढोल बजावा लगी ग्यो हे। पेला भक्त जण उके अख्याणो मतलब अनाज को दान करता था पण अबे जमानो बदली ग्यो तो अपणी श्रद्धानुसार 10-20-50 रूपया दय दे हे। यो ढोली बा को नेक रे हे। इका पीछे भी या मानता हे कि सबको परिवार पलनो चइए। असी ज हे अपणा भारत की परम्परा। 

            नागपाचम मनावा का पाछे नरी पौराणिक कथा होण भी हे। आज का दन नागदेवता के दूध से स्नान कराने को माहत्तम हे अने धूप-दीप से बांबी की पूजा भी करी जाय हे। नरा लोगोण मान भी करे हे अणे पूरी होने पे उके उतारने भी देवस्थान पे पोचे हे। आज का दन भक्त घर का बायर दीवाल पे नी तो कमाड़ पे गोबर से नागदेवता बनाय हे. नाग देवता पे अक्षत, दही, गंध, कुशा, दूर्वा, फूल अने मिठई चढ़ाय हे. इका बाद नागदेवता की पूजा मंत्रोच्चार से करी ने आरती गय ने आरती उतारे हे  

          आज का दन पूजा करी ने केणी भी केवे हे। नरा के याद नी होगा तो हिन्दी में बतय दूं ताकि सब सीखी जाय। 



नागपाचम की केणी --

         प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था।

              एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी डलिया (खर और मूज की बनी छोटी आकार की टोकरी) और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- 'मत मारो इसे? यह बेचारा निरपराध है।' यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा-'हम अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहाँ कामकाज में फँसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई।

                उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो सब को साथ लेकर वहाँ पहुँची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली- सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा- 'तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। वह बोली- भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा माँगती हूं, तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहिन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो मांगना हो, माँग ले। वह बोली- भैया! मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया।

          कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि 'मेरी बहिन को भेज दो।' सबने कहा कि 'इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूँ, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि 'मैं वहीं सर्प हूँ, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। वहाँ के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई ।

                एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- 'मैं एक काम से बाहर जा रही हूँ, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे यह बात ध्यान न रही और उससे गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख बेतरह जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई। परंतु सर्प के समझाने पर चुप हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चाँदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुँचा दिया।

                इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा से कहा- भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएँ सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- 'इन्हें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए'। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी।

                 सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि- सेठ की छोटी बहू का हार यहाँ आना चाहिए।' राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि 'महारानीजी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह उससे लेकर मुझे दे दो'। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगाकर दे दिया।

              छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की- भैया ! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी।

                   यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से पूछा- तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे दण्ड दूंगा। छोटी बहू बोली- राजन ! धृष्टता क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा- अभी पहिनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया।

                   यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं। छोटी वह अपने हार और इन सहित घर लौट आई। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा- ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी।

                तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि मेरी धर्म बहिन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे खा लूँगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है।

              तो तम सब भी आज का दन नागदेवता की पूजा करी ने नागपाचम धूमधाम से मनाओ पण नागदेवता के दूध पिलावा का चक्कर में मत पड़जो। दूध से स्नान कराने को माहत्तम हे। धर्म को पालन करो, आस्था राखो पण अंधविश्वासी नी बणनो। ठीक हे नी भई बेण होण। म्हारी बात याद राख जो। जे राम जी की । 

                     तमारी भोली बेन

   


                    






Wednesday, April 3, 2024

दशा माता को बरत- मालवी लोक परम्परा

 दशा माता को बरत-

हिन्दू पंचांग का अनुसार चेत मईना की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि का दन यो बरत करयो जाय हे । मानता का अनुसार इनी बरत के करने से घर की दशा में सुधार होय हे। 

              इनी बार दशामाता को  बरत आज यानि कि 4 अप्रेल 2024 गुरुवार का दन होयगा । गुरुवार भगवान विष्णुजी को ज दन हे , इकालिए गुरुवार का दन दशामाता बरत आने को विशेस माहत्तम हे।

पूजा को विधि विधान -          

                परब का दन महिला होण मंदर जय ने पीपल का झाड़ की पूजा करे हे ।‌ दशा माता की बेल पीपल के चड़ाय (अर्पित करें) हे. इसे घर की दशा सुधरे अने घर को संकट कटे , बीमारी ने मुसीबत दूर होय ।

                दशामाता को बरत सुहागन होण करें हे। इना दन महिला होण सुबे पेला न्हय धोय ने कच्चो सूत को दस तार को डोरो लय ने उमे दस गठान लगाय हे। इनी डोरा के लय ने पीपल का झाड़ का कने जय ने पीपल को  पूजन करें। इका बाद डोरा की पूजन करें अने पीपल की छाया में बेठी ने दशामाता की कथा सुनें। कथा का बाद डोरा के अपणा गला में बांधी लें अने इके अगली दशामाता तक बंध्यो रेणे दें।

           अगली दशामाता पे असेज नवो डोरा बांधी लें अने पुराना डोरा के नदी-तलाव आदि में विसर्जित करी  दें। इना दिन बरत रख्यो जाय हे अने एकासनो (एक टेम ज भोजन)  करयो जाय हे । भोजन में गंऊ की बनी बिना नमक की चीजा ज खई जाय हे ।      

दशामाता बरत क्यों करनो चईए-

१-दशामाता को बरत करने से घर की खराब दशा सुधरे ।

२-घर की आर्थिक स्थिति अच्छी होय । धन धान्य की कमी नी होय । 

 ३- घर का सदस्य होण के रोग से मुक्ति मिले ।

 इना दन यो मत करो- 

 ऐसी मानता हे कि -

१-दशामाता का  दन कोसिस करो के बजार से सामान  खरीदनो नी पड़ें। जरोत को सब समान एक दन पेला ज खरीदी ने धरी लो।

२- दशामाता का दन कोय के पईसा उधार मत दो अने कोय से उधार लो भी‌ मत ।

३-हुय सके तो इना दन यात्रा मत करो।

                                    तमारी आपणी

                                        भोली बेन 




Sunday, September 24, 2023

तेजा दशमी - मालवा का लोक पर्व

 तेजा दशमी - मालवा का लोक पर्व 

               वैसे तो तेजा दशमी पर्व मूलतः राजस्थान का है किंतु राजस्थान से मध्य प्रदेश का मालवा प्रांत लगा हुआ होने के कारण मालवा में भी तेजा दशमी का पर्व मनाया जाता है और तेजाजी महाराज को लोक देवता के रूप में पूजा जाता है ऐसी मान्यता है कि तेजाजी महाराज की पूजा करने से सर्पदंश से बचा जा सकता है इस बारे में भी एक लोक कथा प्रचलित है । 

                 कहा जाता है कि तेजाजी ने अपने परिवार का गौरव बचाने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। स्थानीय पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि तेजाजी का विवाह बचपन में ही हो गया था, लेकिन वे इससे अनजान थे। दोनों परिवारों के बीच पुरानी दुश्मनी के कारण उन्हें अपनी शादी का पता नहीं चला। बड़े होने पर अपनी शादी की जानकारी होने पर, वह अपनी पत्नी को घर लाने गए। अपने रास्ते में, उन्हें एक सांप का सामना करना पड़ा, जिसने तेजाजी की पत्नी के परिवार के साथ सांप की दुश्मनी के कारण उसे काटने की इच्छा की। वीर तेजाजी ने अपनी पत्नी को घर लाने के बाद लौटने का वादा किया। उसने अपनी पत्नी के घर के रास्ते में कई दुश्मनों का सामना किया और उन सभी को मारने में सक्षम था। लौटने के बाद, तेजाजी ने अपनी पत्नी को घर छोड़ दिया और सांप के पास वापस चले गए।

                   तेजाजी का मेला 

सांप को जीभ पर तेजाजी को काटना पड़ा क्योंकि तेजाजी के शरीर का कोई अन्य हिस्सा चोटों से रहित नहीं था। वीर तेजाजी ने अपने परिवार का सम्मान बनाए रखने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी और उसके बाद उन्हें लोक देवता के रूप में पूजा जाने लगा। 

               कृषक इन्हें बहुत मानते हैं क्योंकि तेजाजी महाराज भी कृषक थे । वे सूर्योदय से पहले ही हल, बैल, पिराणी आदि लेकर निकल जाते थे । एक बानगी देखिए -

         काँकड़ धरती जाय निवारी कुँवर तेजा रे

         स्यावड़ ने मनावे बेटो जाटको।

         भरी-भरी बीस हळायां कुँवर तेजा रे

          धोळी रे दुपेरी हळियो ढाबियो

          धोरां-धोरां जाय निवार्यो कुँवर तेजा रे ।

          ऐसे अनेक प्रसंग है। 

               

                 तेजा दशमी तेजाजी की जयंती पर मनाई जाती है, जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद शुक्ल दशमी या भाद्रपद के शुक्ल पक्ष के दसवें दिन आती है। कुछ लोगों ने कल यह लोक पर्व मना लिया कुछ लोग आज तेजा दशमी मनाएंगे । अलग-अलग जगह ग्रामों में तेजाजी के निशान भी निकाले जाते हैं और जगह-जगह मेला भी भरता है। इस दिन मवेशी खरीदना और बेचना शुभ माना जाता है। लोक संस्कृति में वीर तेजाजी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय डाक विभाग ने 7 सितंबर, 2011 को तेजाजी के सम्मान में एक विशेष डाक टिकट जारी किया था। आप सभी को तेजा दशमी की हार्दिक बधाइयां एवं शुभकामनाएं।

                       आपकी भोली बेन



                         

Wednesday, September 6, 2023

जन्माष्टमी - अपणा मुख्यमंत्री मोहन यादव जी भी कय रिया हे के मालवी जन्माष्टमी मनावां, कांकरिया अजमा को भोग लगावां।

शीर्षक -अपणा मुख्यमंत्री मोहन यादव जी भी कय रिया हे के मालवी जन्माष्टमी मनावां, कांकरिया अजमा को भोग लगावां। 

           वसे तो जन्माष्टमी आखा देस में मनई जाय हे अने मथरा-वृंदावन की फेमस भी हे पण अपणो मालवो भी कई कम नी हे। यां का लोगोण को उत्साह भी चरम पे रे हे । अने तिथि होण का घालमेल को रापटरोल्यो हर बार ज चले हे। एक तिथि दो दन तक चले हे। इसे यो लगे हे कि उत्सवप्रेमी भारत को सच्चों प्रतिनिधित्व "अपणो मालवो" ज करे हे। या की जगे हरेक तेवार दो दन तक मनायो जाय हे। अपणे कई खाव-पियो, देवदरसन करो ने मोज करो। अपणा मुख्यमंत्री जी भी कय रिया हे। नी मानो तो 21 अगस्त 2024 को सर्कूलर देखी लो । 



           मालवा में जन्माष्टमी कृष्ण मंदर होण का साते लगभग हरेक घर में मनई जाय हे। वल्लभ सम्प्रदाय का लोगोण तो ठाकुर जी को अच्छो खासो उत्सव करे हे। बालरूप की पूजा करे। मिष्ठान बणावे अने राते 12 बजे कृष्ण भगवान को जनम मानी ने आरती उतारें। विशेस करी ने धणा की पंजीरी ने कांकरिया अजमा को भोग लगावे। इनी बहाना से गरीब-से-गरीब मनख भी डिराय फ्रूट को परसाद खय ले हे।  

            इनी दाण भी 6 सितंबर की दुफेर से लय ने 7 सितंबर की दुफेर तक जनमानस जन्माष्टमी परब मनावेगो आने लड्डू गोपाल को हिंडोलो सजावेगो। अने अपणा मालवा का लोगोण तो इत्ता उत्साहित रे हे के जगे-जगे चोराया पे दही - मटकी टांगी ने मटकी फोड़ की प्रतियोगिता ज कराने मंडी जाय अने ओर तो ओर मटकी फोड़ने वाला अपणा के " "गोपाल" से कम नी समझे। अई चढ़े-वई चढ़े, उपरा-उपरी पड़े पण मटकी जरूर फोड़े अने मटकी फोड़ने का बाद दई माखन बखरी जाय उके चाटी-पोंछी ने खाय, इको भी अलग ज आनंद हे बाल लीला के साकार करनो चाय हे। नरा लोगोण आज राखी को तेवार भी मनाय हे।

            तो भई बेण तमारे सबके जन्माष्टमी की दो बार बधई । दो दन तक खूब तेवार मनावो अने इंदौर का राजवाड़ा का कृष्ण मंदिर में दरसन करनो मत भूलजो असेज उज्जैन का गोपाल मंदिर, आगर को रणछोड़ दास मंदिर की रोनक भी कम नी रेगी। सब जगा दरसन करने जाव ने पंजेरी ने कांकरियो अजमो जरूर बणाजो, जापा वाली के खिलायो जाय हे पण परसादी का रूप में अपण सब ज लांगा। चरनामृत वास्ते पंचामृत भी बणाजो। लड्डू गोपाल के नवा वस्त्र धारण कराजो अने घर का नाना-मोटा छोरा-छोरी होण को सिंगार करी ने लड्डू गोपाल सरुखा सजाजो अने फेर सेल्फी ने रील बणय ने फेसबुक अने इंस्टा पे चोटय दीजो। व्हाट्सएप पे बधई तो काल से ज शुरू हुई गी हे। "आलकी के पालकी जे हो लड्डू गोपाल की "


   


                                                  स्वरचित

  हेमलता शर्मा भोली बेन               इंदौर मध्यप्रदेश 

         

गाजबीज माता को बरत -मालवी लोक परम्परा

 गाजबीज माता को बरत -मालवी लोक परम्परा अपणो मालवो निमाड़ तीज तेवार की खान हे। यां की जगे केवात हे - बारा दन का बीस तेवार। केणे को मतलब हे कि...