भारतीय नववर्ष- गुड़ी पड़वा
(मालवा में मालवी दिवस के रूप में मनाया जाता है।)
नववर्ष संपूर्ण विश्व में एक उत्सव की भांति मनाया जाता है । विभिन्न देश पृथक-पृथक तिथियों एवं दिन को नव वर्ष के रूप में मनाते हैं । इसी तारतम्य में भारतीय नववर्ष चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है जिसे नव संवत्सर कहा जाता है । इस बार नव संवत्सर 2 अप्रैल, 2079 शनिवार से प्रारंभ हो रहा है और भारत के विभिन्न राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है । जैसे- महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, तमिलनाडु में युगादि, कश्मीर में नवरेह, कर्नाटक में उगादि, मणिपुर में साजिबु नोगमा पानबा या मेतरोई चेइराओबा, विक्रम संवत आदि । इसी प्रकार विभिन्न संप्रदायों में भी यह अलग-अलग नामों से (जैसे चेटीचंड, मालवा में मालवी दिवस) मनाया जाता है । सामान्यतः संपूर्ण भारत में इसका नाम नव संवत्सर या गुड़ी पड़वा ही प्रचलित है ।
गुड़ पड़वा का अर्थ होता है विजय पताका । संवत्सर के भी पांच प्रकार हैं- सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास । नव संवत्सर मनाने के पीछे अनेक मान्यताएं प्रचलित है । पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था । इसलिए इस दिन को नव संवत्सर के रूप में मनाया जाता है । इतिहास अनुसार माना जाता है कि चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने शकों का पराभव इसी दिन किया था जिसे विजय के प्रतीक रूप में मनाया जाता है और इसे उनके नाम पर विक्रम संवत भी कहा जाता है। विक्रम संवत में 12 मास यथा-चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण (सावन), भाद्रपद (भादो), अश्विन (क्वांर), कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन होते हैं। देखा जाएं तो चैत्र मास ऐसा महिना है जिसमें वृक्ष और लताएं फलती- फूलती हैं जो जीवन का मुख्य आधार है । इन वृक्षों और लताओं को सोमरस चंद्रमा से प्राप्त होता है तथा शुक्ल प्रतिपदा को चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना गया है इसलिए इस दिन को वर्ष आरंभ माना जाता है । कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने वानर राज बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई थी जिसे प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (ग़ुड़ियां) फहराएं थे । तब से ही इस दिन घर के ऊपर पताका लहराने का प्रचलन है । इसके अलावा महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी तिथि पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग’ भी रचा था।
शास्त्रीय मान्यतानुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि के दिन नव संवत्सर अर्थात गुड़ी पड़वा का अनुष्ठान सूर्योदय से पहले आरंभ हो जाता है । लोग प्रातः जल्दी उठकर शरीर पर तेल लगाने के बाद स्नान करते हैं। स्नान आदि से शुद्ध होकर हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर "ओम भूर्भुव: स्व: संवत्सर- अधिपति आवाहयामि पूजयामि च" इस मंत्र से नव संवत्सर की पूजा करनी चाहिए। इस दिन घर के द्वार को सुंदर तरीके से सजाया जाता है। प्रवेश द्वार को आम के पत्तों का तोरण बनाकर लगाया जाता है और सुंदर फूलों से द्वार को सजाया जाता है। इसके साथ ही रंगोली बनाई जाती है। साथ ही विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं।
एक मान्यता के अनुसार इस दिन बनाए जाने वाले सभी व्यंजन स्वास्थ्वर्धक होते हैं जैसे आंध्र प्रदेश में बनाई जाने वाली पच्चड़ी व्यंजन के खाली पेट सेवन से चर्म रोग दूर होते हैं और पूरन पोली को बनाने में गुड़, नीम के फूल, इमली और आम का इस्तेमाल करते हैं, यह सभी हमारे शरीर के स्वास्थ्य के काफी लाभदायक होते हैं। इस दिन सुबह के समय नीम की पत्तियां खाने की भी परंपरा है। ऐसा करने के पीछे माना जाता है कि इससे हमारे शरीर के खून में मौजूद अशुद्धियां दूर हो जाती हैं।
इसी दिन से चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ भी माना जाता है । लोग नौ दिन तक मां दुर्गा की आराधना करते हैं । ज्योतिषियों के अनुसार नव संवत्सर का नाम नल बताया गया है । इस बार रेवती नक्षत्र और तीन राजयोगों में नववर्ष की शुरुआत हो रही है जिसे एक शुभ संकेत बताया जा रहा है । तिथि की घट-बड़ नहीं होने से नवरात्रि पर्व भी इस बार पूरे नौ दिवस रहेगा । ज्योतिषियों का मानना है कि ग्रहों का ऐसा संयोग लगभग 1563 साल बाद बन रहा है तो सभी को इसका लाभ उठाना चाहिए ।
नव संवत्सर को हिंदू नव वर्ष भी कहा जाता है । मेरे विचार में इसे हिंदू नववर्ष न कहा जाकर भारतीय नववर्ष कहा जाना उचित प्रतीत होता है और प्रत्येक भारतीय को इसे पूर्ण उल्लास और धूमधाम से मनाना चाहिए ताकि भारतीय संस्कृति और परंपरा और अधिक पुष्ट होकर नवपीढ़ी में राष्ट्रीय चेतना का संचार हो सके ।
हेमलता शर्मा भोली बेन
इंदौर मध्यप्रदेश