Friday, December 31, 2021

कई नवो बरस मनावां


 शीर्षक- *कई नवो बरस मनावां*


इनी कोरोना का बीच,

कई नवो बरस मनावां ।

घरे रय ने सगला अपण,

कोरोना के दूर भगावां ।।


अपणा भारत की संस्कृति,

नवीपीढ़ी का मन में जचावां ।

अपण तो गुड़ी पड़वा के ज,

नवा बरस का रूप में मनावां ।।


अपणी संस्कृति चिर सनातन,

इके आखा जग में फेलावां ।।

यो केलेंडर बदलणे को दन हे,

या बात नाना-मोटा के समझावां ।।


यो नवो बरस अंग्रेजी हे हो, 

इके अपण क्यवं मनावां । 

घरे रय ने सगला अपण

कोरोना के दूर भगावां ।।


ओमिक्रान ने चुनाव को तीर,

म्यान में ज हे खुसी मनावां ।

लापरवाही करेगो कोई ओर,

उकी कीमत अपण चुकावां ।।


खट्टो-मीठो सगलो अनुभव,

यो सब लोगोण के बतावां ।

जो 2022 अपणे दय ग्यो,

2023 में कई नवो करावां ।।


करणो हे कई नवो काम,

तो चलो योग के अपणावा ।

परोड़े उठणे की हऊ आदत,

नाखी ने अपण फरवा जावा ।। 

          स्वरचित

          भोली बेन

      इंदौर,मध्यप्रदेश

Monday, December 6, 2021

ओमिक्रान से साक्षातकार

 


ओमिक्रान से साक्षातकार   

      मालवी व्यंग्य 

'कां रे ऊमीजान ! तू मालवा में कई करवा आयो?'

'म्हारो नाम मत बिगाड़ो दादा ! म्हारो नाम ओमिक्रान हे ।'

'देख रे जादा लपरई मत करें सीदोसट बतई दे, यां कई काम थारे?' 

'हूं म्हारा नाना भई से मिलने आयो !' 

'थारो नानो भई ! यां मालवा में ! क्यंव गेल्यो बणाय दादा ?'

'अरे सई कई रियो हूं । उ डेल्टो पिलस हे नी, उज म्हारो नानो भई हे ।'

'ओ... थारी की ! तू डेल्टा पिलस को मोटो भई ने कोरोना ज थारो बाप !'  मालवी राम्या ने झट मुंडा ने नाक गुलुबंद ‌से बांधी ल्या । 

'हा.हा..हा..अब्बे भरायो डर, अब्बी तक तो तम‌ म्हारे भोत हल्का में लय रया था दादा ! अब्बे कई हुवो, सगला तोता उड़ी ग्या अब्बे ?' 

'म्हारे माफ कर जो ऊमीजान जी, म्हार से दूर रीजो मने तो मुंडो ने नाक दोय गुलुबंद से बांधी ल्या हे अणे टीका का दोय डोज भी लगई ल्या हे ।'

'पण अब्बी तो तू खुल्ला मुंडे फरी रयो थो ने कल भेर् या घरे भोत रायतो ने लड्डू झाड़ी रयो थो इत्ती भीड़ में ।' 

'हो भूली ग्यो थो म्हारा दायजी ! थारा हाथ जोड़ू अब्बे चेन से जीने‌ दे !'

'चेन से तो जदे जीवोगा नी बालम जी, जदे कोरोना की चेन नी बणने दोगा !  पण तमारा मालवी ‌मनख तो खाणे-पीणे में ज मस्त, बाटी फटकारें ने ताणी-कूटी ने सोई जाय । तमारी सरकार बापड़ी इत्ती चेतई री फिर भी तम मास्क नी पेरो ने भीड़ एकटी करो ।'

'थारी आंख्यां फूटी गई कई? ऊमीजान, जां लाखों लोग एकटा हुई रया वां तू नी जय रयो ने हमारा यां सो-डेढ़ सो मनक ब्याव में कई एकटा हुई ग्या चल्यो आयो ।' 

'ओ राम्या दादा ! जरा मुंडो हमाली ने बात करो हमारी फोज कोई छोटी-मोटी नी हे सब जगा मोजूद रे । हमारे कोई से हेत नी हे नानो-मोटो, अमीर-गरीब, ईमानदार-बईमान सबके निपटय दां हम । जो भी भीड़ में भरायगो ने खुल्ला ‌मुंडे फरेगो अणे वेक्सीन का दोय डोज नी लगायगो उके तो चपेट में लांगा ज सई चाय कई भी होय ।‌ दूसरी लेर के भूली ग्या कई ? पईसो, नाम, पद कई काम नी आयो, मोटा- मोटा पहाड़ रड़कई दिया हमने । अब्बी भी जाफ्ता से नी रया तो तीसरी लेर आणे में देर नी लगेगी हो, समझी जाव अब्बी टेम हे नी तो इनी लोक से परलोक जाणे में टेम नी लगेगो हो...!' 

'ओ बईईईईईईई...!' राम्यो जोर से चिल्लायो ने उठी ने खाट पे बठी ग्यो । उके धूजणी भरई गी थी । उकी अल्लाट सुणी ने राम्या की जी दोड़ी ने बायर अई अणे बोली- "कई हुवो रे राम्या ! पाछो सपणो देख्यो कई ?" 

"हां वो जी ! पण इनी सपणा ने म्हारी आंख्यां खोली दी । अब्बे हूं ब्याव में कोई के भीड़ नी करने दूंवा, सबके मास्क लगाने वास्ते चेतई दूंवा ने अपणा गांव का वी तीन दाजी जिनने अब्बी तक टीको नी लगायो हे, काले ज सरकारी अस्पताल ‌लय जय ने लगवई दूंवा ।" राम्यो बड़बड़ातो जय रयो थो । 

जी बोली- "असो कई देखी ल्यो रे सपणा में, यमदूत दिखी ग्या कई ?"

राम्यो ‌बोल्यो- "यमदूत को मोटो बाप...उ‌ ऊमीजान ...नी नीईई..ओमिक्रान से म्हारो साक्षातकार हुई ग्यो ।" अब्बी भी राम्या का मुंडा पे गुलुबंद बंध्यो थो ने कोरोना को डर उकी आंख में साफ़-साफ दिखी रयो थो । 

                     स्वरचित

          हेमलता शर्मा भोली बेन

              इंदौर, मध्यप्रदेश

गाजबीज माता को बरत -मालवी लोक परम्परा

 गाजबीज माता को बरत -मालवी लोक परम्परा अपणो मालवो निमाड़ तीज तेवार की खान हे। यां की जगे केवात हे - बारा दन का बीस तेवार। केणे को मतलब हे कि...